स्थापना दिवस पर नगर का आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से आच्छादित रहेगा। हर घर की छत पर पतंगें उड़ेंगी और माइक पर गूंजेंगे स्वरों में बंधे परंपरागत जुमले-‘बोई काट्या है!’। पतंगबाजी का यह दौर आखाबीज और आखातीज तक चलेगा। गर्मी को मात देने के लिए छतों पर टेंट, छाया, माइक और डीजे की व्यवस्था की गई है।
हर घर की रसोई में परोसा जाएगा खीचड़ा और इमलाणी। इसके साथ चलेगा शीतल पेयों और व्यंजनों का दौर दही-लस्सी, बेल शर्बत, इमली ज्यूस, कचोड़ी, समोसे, दही बड़े, भुजिया और मिठाइयों की खुशबू वातावरण को और रसमय बनाएगी।
दोपहर में नई पानी की मटकी डाली जाएगी और मटकी, ढक्कणी, लोटड़ी, हांडी व सर्वा का पूजन किया जाएगा। महिलाएं पारंपरिक वस्त्र और आभूषणों से श्रृंगारित होकर पूजन में भाग लेंगी। यह अनुष्ठान नगर की समृद्धि और वर्षभर की शांति का प्रतीक माना जाता है।
स्थापना दिवस की परंपरा अनुसार तैयार किया गया ‘चंदा’ भी आकर्षण का केंद्र रहेगा। इस पर चित्रों, दोहों और लोक श्लोकों के माध्यम से बीकानेर की संस्कृति को दर्शाया जाएगा। चंदा का पूजन कर उसे जूनागढ़ प्रांगण और घरों की छतों से उड़ाया जाएगा।
नगर स्थापना दिवस केवल पर्व नहीं, बीकानेर की संस्कृति, भावनाओं और लोकआस्था का उत्सव है। यह वह दिन है, जब बीकानेर के लोग अपने अतीत को स्मरण कर वर्तमान को रंगों से भरते हैं। जहां पतंगें उमीदें उड़ाती हैं और खीचड़े की खुशबू परंपरा को जिंदा रखती है।