याचिका में इसे भी चुनौती दी गई है कि जो मुआवजे का निर्धारण किया जा रहा है वह 2010 की अधिसूचना की दरों के आधार पर किया जा रहा है जबकि 15 साल में जमीनों के भाव बहुत बढ़ गए हैं। चंदन सिंह सिदार, रविशंकर, उत्तम सिंह, महेश पटेल समेत 49 किसानों जिसमें अधिकतर आदिवासी समुदाय के हैं, ने वकील सुदीप श्रीवास्तव व सुदीप वर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की खंडपीठ ने बुधवार को याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई की।
भू अधिग्रहण की कार्रवाई अवैधानिक
खंडपीठ को यह भी बताया गया कि संविधान की धारा 254 के अनुसार यदि संसद के द्वारा किसी क्षेत्र में कानून बना दिया गया है तो उस क्षेत्र पर राज्य विधानसभा की ओर से बनाए गए कोई कानून लागू नहीं होते। अत: यह पूरी भू अधिग्रहण की कार्यवाही असंवैधानिक है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि कि राज्य सरकार या कलेक्टर किस आधार पर अवार्ड पास कर रहे हैं वह भी नहीं बता रहे हैं। ना ही भूमि अधिग्रहण अवार्ड की प्रति दी गई है। इसके विपरीत कई किसानों की जमीनों पर अवैध कब्जा जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के द्वारा सितंबर अक्टूबर 2024 से कर दिया गया है। पूर्व में भी याचिका दायर होने के तर्क को स्वीकार नहीं किया कोर्ट ने
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत और शशांक ठाकुर ने इस मसले पर सरकार का पक्ष रखा और कहा कि पूर्व में एक याचिका इसी संबंध में लगाई जा चुकी है। उक्त याचिका में कलेक्टर को सभी समस्याओं को सुनकर निराकरण करने का आदेश हुआ था और कलेक्टर ने उन सभी समस्याओं का निराकरण कर दिया है अत: यह नई याचिका चलने योग्य नहीं है। इस तथ्य के जवाब में याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि पहले की याचिका केवल 8 प्रभावितों के द्वारा लगाई गई थी और यह याचिका 49 व्यक्तियों के द्वारा लगाई गई है।
धारा 300-ए का खुला उल्लंघन
यह
संविधान की धारा 300 ए का खुला उल्लंघन है। क्योंकि किसी भी निजी भूमि का बिना विधिवत कानून के अधिग्रहण और मुआवजा दिए बगैर उस जमीन का अधिकार किसी और को नहीं सौंपा जा सकता। याचिकाकर्ताओं की तरफ से यह भी बताया गया कि नया भूमि अधिग्रहण कानून एकमात्र ऐसा कानून है जो पुनर्वास और पुनर्स्थापना पर प्रभावित व्यक्तियों को कानूनी अधिकार देता है।