उल्लेखनीय है कि असदुद्दीन ओवैसी की मूल याचिका का विरोध करते हुए यह याचिका लगाई गई है। याचिकाकर्ता ने संशोधन कानून पर स्टे की बात पर जोर दिया, इसका विरोध सभी उत्तरदाताओं, हस्तक्षेपकर्ताओ और केंद्र सरकार की ओर से किया गया।
आज फिर सुनवाई
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने सबसे बड़ी बात यह कह दी कि आर्टिकल 26 सेक्युलर है और यह सभी समुदायों पर लागू होता है।” प्रशासन आदि से जुड़े अनुच्छेद 26 के शब्दों को आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता। दोनों तरफ की दलीलों को सुनने के बाद केंद्र के वकील के निवेदन पर कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए कल दोपहर दो बजे का समय तय किया है। सुको ने यह भी कहा कि हम अभी इस कानून पर कोई रोक नहीं लगा रहे हैं। वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्थान नहीं, केवल प्रबंध संस्थान
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि
वक्फ बोर्ड दान संपत्ति का ही रख रखाव नहीं बल्कि मदरसों और मस्जिदों का भी करता है। इसलिए इस नए संशोधन को अनुच्छेद 25, 26 के अंतर्गत संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इस पर हस्तक्षेपकर्ता डॉ. सचिन अशोक काले ने दलील दी कि यह केवल मुसलमान अल्पसंख्यक की बात नहीं है। ऐसे में तो सभी प्रकार के अल्पसंख्यक शामिल होने चाहिए तथा उन सभी को अनुच्छेद 29 और 30 का भी लाभ मिलना चाहिए।
यदि वक्फ अधिनियम अनुच्छेद 25-26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए बनाया गया है, तो इसे अनुच्छेद 14-15 के अनुरूप होना चाहिए और यदि विवादित अधिनियम अनुच्छेद 29-30 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है, तो इसमें सभी अल्पसंख्यकों को, जिसमे भाषाई अल्पसंयक भी हैं, को भी शामिल किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ओवैसी व अन्य का कहना था कि चूंकि वक्फ बोर्ड मुसलमानों से सबंधित है इसलिए सरकार इस संविधान में उल्लेखित प्रावधान के अनुसार इसमें हस्तक्षेप नही कर सकती। हस्तक्षेपकर्ता का तर्क था कि वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्थान नहीं है, वह केवल प्रबंध संस्थान है, इसलिए यह दलील भी टिक नही पायी।