जिसे आग ने मिटाना चाहा, उसे जुनून ने फिर जिंदा किया, फेमस निर्माता का जज्बा बना मिसाल
Success Story: एक ऐसा फिल्म निर्माता जिसका स्टूडियो आग में स्वाहा हो गया था। उनके पास कुछ भी नहीं बचा था लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। उसने अपने सपनों को फिर जिंदा किया।
बी. एन. सरकार का संघर्ष: आग ने सब कुछ छीना, लेकिन हिम्मत ने सिनेमा को नई दिशा दी
B. N. Sarkar Success Story: जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जब सब कुछ टूट जाता है और हमारे सपने भी बिखर जाते हैं। लेकिन कुछ लोग फिर Zero से एक नई शुरुआत करते हैं। फेमस फिल्म निर्माता बी. एन. सरकार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
बी. एन. सरकार सिर्फ एक फिल्म निर्माता नहीं थे, बल्कि भारतीय सिनेमा को नई दिशा देने वाले भी एक व्यक्ति थे। साल 1940 में एक भयानक आग में उनका पूरा न्यू थिएटर्स स्टूडियो, रिकॉर्डिंग्स और सालों की मेहनत जलकर राख हो गई।
कोई और होता तो शायद हार मान लेता, लेकिन बी. एन. सरकार ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने फिर से शुरुआत की, नए कलाकारों को मौका दिया, और अपने सपनों को दोबारा जिंदा किया। उन्होंने भारतीय फिल्मों को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उनकी कहानी सिखाती है कि कभी हार मत मानो, क्योंकि राख से भी नई उड़ान भरी जा सकती है।
बिहार में जन्म; लंदन में की पढ़ाई
बी. एन. सरकार का पूरा नाम बीरेंद्रनाथ सरकार था। उनका जन्म 5 जुलाई 1901 को बिहार के भागलपुर में हुआ था। उनके पिता, सर निरेंद्रनाथ सरकार, बंगाल के पहले एडवोकेट जनरल थे, और उनके परदादा, पीरी चरण सरकार, ने अंग्रेजी भाषा की पहली भारतीय टेक्स्टबुक लिखी थी।
बी. एन. सरकार की सफलता की कहानी (फोटो सोर्स: आईएएनएस)
बी. एन. सरकार ने कोलकाता के प्रसिद्ध हिंदू स्कूल से पढ़ाई करने के बाद लंदन यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। विदेश से लौटने के बाद उन्होंने कोलकाता में बतौर इंजीनियर करियर की शुरुआत की, लेकिन वह अपना बिजनेस करना चाहते थे। एक दिन उन्होंने सिनेमा हॉल के बाहर टिकट के लिए लंबी लाइन देखी, तो उन्होंने इसे अपने व्यवसाय के तौर पर शुरू करने का फैसला लिया, जहां लोग बिना देखे ही टिकट खरीदने को तैयार थे। यहीं से उन्होंने फिल्म निर्माण में कदम रखा।
उन्होंने पहले ‘चित्रा’ सिनेमा हॉल का निर्माण कराया, जिसका उद्घाटन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इसके बाद 1931 में उन्होंने ‘न्यू थिएटर्स’ की स्थापना की, जो आने वाले दशकों में भारतीय सिनेमा की ताकत बना। शुरुआती कुछ फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। ‘देवदास’, ‘चंडीदास’, और ‘भाग्य चक्र’ जैसी फिल्मों की सफलता ने उन्हें सिनेमा की दुनिया का बादशाह बना दिया। उन्होंने केवल फिल्में नहीं बनाईं, बल्कि तकनीक, कला और भारतीय संस्कृति के अद्भुत संगम का आंदोलन खड़ा किया।
भीषण आग ने सबकुछ स्वाहा
बी. एन. सरकार का ‘न्यू थिएटर्स’ तकनीकी नवाचार, सांस्कृतिक योगदान और रचनात्मकता के तौर पर शिखर पर था, लेकिन 9 अगस्त 1940 को एक भीषण आग ने सबकुछ स्वाहा कर दिया। बी. एन. सरकार की इस सपनों की फैक्ट्री को राख में बदल दिया। जिस वक्त आग लगी, उस समय वे मोहन बागान और आर्यन क्लब के बीच फुटबॉल मैच देख रहे थे। इस दौरान किसी ने आकर उनके कान में स्टूडियो में आग लगने की खबर सुनाई। खबर सुनते ही वे तुरंत स्टूडियो की ओर भागे, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। पूरा प्रोडक्शन जलकर खाक हो चुका था। दशकों की मेहनत तबाह हो चुकी थी।
इतनी बड़ी तबाही के बाद भी बी. एन. ने हार नहीं मानी। उन्होंने फिर से अपना स्टूडियो खड़ा किया, नए और होनहार कलाकारों को मौके दिए। उन्होंने बिमल रॉय जैसे टैलेंटेड लोगों को आगे बढ़ने का मंच दिया।
1944 में, उन्होंने फिल्म ‘उदयेर पथे’ बनाई, जो एक क्रांतिकारी फिल्म थी। इसी फिल्म से उन्होंने अपनी नई शुरुआत की। 1951 में, बी. एन. सरकार को फिल्म इंक्वायरी कमेटी का सदस्य बनाया गया। इसी कमेटी की सिफारिश पर बाद में एफटीआईआई (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) की स्थापना हुई।
28 नवंबर 1980 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय सिनेमा की प्रेरणा बना हुआ है। सोर्स: आईएएनएस