बता दें मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक की फिल्म साल 1981 में रिलीज हुई थी। लेकिन कल्ट क्लासिक ‘उमराव जान’ एक बार फिर से सिनेमाघरों में दस्तक देने को तैयार है। अपनी शानदार कहानी, म्यूजिक के साथ-साथ 19वीं सदी के लखनऊ की शाही वेशभूषा के लिए मशहूर फिल्म को लेकर मुजफ्फर अली ने और क्या बताया, चलिए जानते हैं।
निर्देशक को इस बात का है अफ़सोस
मुजफ्फर अली ने बताया कि ‘उमराव जान’ सिर्फ डायलॉग्स से नहीं, बल्कि कपड़ों के ज़रिए भी अपनी कहानी कहती है। उन्होंने कहा कि हर किरदार के कपड़े उसकी पहचान और उस दौर की संस्कृति को दिखाते थे। ये सारे कपड़े हाथ से बनाए गए थे और उनमें प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि आजकल बाजार में मिलने वाले तैयार कपड़ों ने उस दौर की खासियत को पीछे छोड़ दिया है, जब लोग अपने कपड़े खुद सिलते, रंगते और पहनते थे। मुजफ्फर अली ने कहा, “फिल्म का हर सीन कपड़ों के ज़रिए कुछ कहता है। ये कपड़े लोगों के घरों से या पुरानी जगहों से इकट्ठा किए गए थे। उस ज़माने में केमिकल वाले रंग या नायलॉन नहीं, बल्कि हाथ से बुने हुए कपड़े और प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता था। इन्हें बनाने में मेहनत लगती थी, लेकिन नतीजा बेहद खूबसूरत होता था।”
उन्होंने आगे कहा, “उस दौर में कपड़े, संगीत या कोई भी चीज बनाने में लोग पूरी तरह डूब जाते थे। आज के समय में वह चीजें नहीं मिलतीं, कह सकते हैं कि वह समय अब जा चुका है।”
‘उमराव जान’ की रिलीज के तीन दशक बाद, यह फिल्म 27 जून को 4के रिस्टोर्ड वर्जन में फिर से सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार है। यह भी पढ़ें:
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