लोकसभा में सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने नियम 377 के तहत केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री मनसुख मांडविया से यह मांग रखी। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन संसाधनों और उचित प्रशिक्षण के अभाव में ये प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पातीं। यदि खंडवा में एक खेल अकादमी स्थापित की जाती है, तो यह जनजातीय युवाओं के लिए नए अवसरों के द्वार खोलेगी।
जनजातीय समाज में उत्कृष्ट तीरंदाज, लेकिन मंच का अभाव
भील, भिलाला, कोरकू और गोंड जनजातियों में कई कुशल तीरंदाज मौजूद हैं। यह परंपरागत खेल उनके पूर्वजों से विरासत में मिला है, जो कभी शिकार कौशल और आत्मरक्षा के लिए उपयोग किया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में, खेल के रूप में इसे वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है। ओलंपिक सहित अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी तीरंदाजी को विशेष महत्व दिया जाता है, ऐसे में जनजातीय युवाओं को अगर उचित मंच और प्रशिक्षण मिले, तो वे भी इन प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।
खेल अकादमी से बढ़ेगी कार्यक्षमता, मिलेगा प्रशिक्षण
सांसद पाटिल का कहना है कि ऊंचे और अनुकूल स्थानों पर उन्नत प्रशिक्षण से खिलाड़ियों की कार्यक्षमता में दुगुना-तिगुना सुधार हो सकता है। यह खेल अकादमी न केवल जनजातीय युवाओं की प्रतिभा को निखारेगी, बल्कि उनकी खेल भावना को भी बढ़ावा देगी। इसके साथ ही, यह कदम जनजातीय समाज के आर्थिक और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सरकार से जल्द निर्णय की उम्मीद
खंडवा संसदीय क्षेत्र में इस अकादमी की मांग लंबे समय से की जा रही है। सांसद ने उम्मीद जताई है कि केंद्र सरकार इस पर जल्द निर्णय लेगी, जिससे जनजातीय युवाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलेगा। इससे न केवल खेल क्षेत्र में एक नई क्रांति आएगी, बल्कि जनजातीय समाज की सांस्कृतिक पहचान और परंपराएं भी संरक्षित रहेंगी