रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र 26 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने की उम्मीद है और 2030 तक 77 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा सैटेलाइट सेवाओं का होगा, जो 2030 तक 36 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का योगदान देगी।”
बैंकिंग, वित्त, खुदरा और लॉजिस्टिक्स का बढ़ रहा डेटा
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में मुख्य रूप से तीन शामिल हैं: सैटेलाइट निर्माण, लॉन्च सेवाएं और सैटेलाइट सेवाएं। वर्तमान में भारत वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 2.1 प्रतिशत हिस्सा रखता है, लेकिन यह क्षेत्र 26 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से आगे बढ़ने का अनुमान है। इस विकास को बैंकिंग, वित्त, खुदरा और लॉजिस्टिक्स जैसे उद्योगों में सैटेलाइट-आधारित डेटा के बढ़ते उपयोग से बल मिल रहा है।
एक दशक पहले तक भारत का अंतरिक्ष उद्योग मुख्य रूप से इसरो जैसे सरकारी संगठनों के दायरे में था। हालांकि, हाल के वर्षों में निजी कंपनियों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया है, जिससे नवाचार और निवेश को बढ़ावा मिला है। पिछले दस वर्षों में सैटेलाइट उत्पादन की लागत में लगभग 90 प्रतिशत की कमी आई है, और पिछले तीन वर्षों में लॉन्च की आवृत्ति दोगुनी हो गई है। सरकार के समर्थन और अनुकूल नीतियों के साथ ये कारक स्टार्टअप्स और स्थापित कंपनियों दोनों के लिए नए अवसर पैदा कर रहे हैं।
स्टार्टअप्स लॉच करेंगे सैटेलाइट
रिपोर्ट का अनुमान है कि अगले चरण के विस्तार में समाधान-उन्मुख कंपनियां मुख्य भूमिका निभाएंगी। बड़े व्यापारिक समूह भी सैटेलाइट-आधारित विश्लेषण में निवेश करने और विभिन्न व्यावसायिक अनुप्रयोगों के लिए अपनी खुद की सैटेलाइट श्रृंखलाएं स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, “निकट से मध्यम अवधि में, समाधान-उन्मुख कंपनियां क्षेत्र के विस्तार में केंद्रीय भूमिका निभाएंगी, जबकि बड़े समूह सैटेलाइट-आधारित विश्लेषण में उतरने और अपनी सैटेलाइट श्रृंखलाएं स्थापित करने की उम्मीद करते हैं।” सरकार और निजी उद्यमों के मजबूत समर्थन के साथ, भारत का अंतरिक्ष उद्योग तेजी से बढ़ने के लिए तैयार है, जिससे यह वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है।