इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 और 2024 के बीच अनुसूचित बैंकों के माध्यम से ऋण प्राप्त करने वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों की हिस्सेदारी 14% से बढक़र 20% हो गई। इसी अवधि के दौरान मध्यम उद्यमों में अनुसूचित बैंकों के माध्यम से लोन लेने वाले उद्योगों की हिस्सेदारी 4% से बढक़र 9% हो गई है।
पर बड़ा गैप अभी भी मौजूद
वित्त वर्ष 2016-17 में एमएसएमई क्षेत्र की ऋण मांग 69.3 लाख करोड़ रुपए थी। इसमें 10.9 लाख करोड़ रुपए लोन ही औपचारिक स्रोत से मिला। 58.4 लाख करोड़ रुपए की पूर्ति अनौपचारिक स्रोत से हुई। इस तरह ऋण गैप 58.4 करोड़ रुपये रहा। वित्त वर्ष 2020-21 तक एमएसएमई ऋण मांग का केवल 19% औपचारिक रूप से पूरा किया गया था। एमएसएमई की ऋण मांग 99 लाख करोड़ रुपए दर्ज की गई, जिसमें 19 लाख करोड़ रुपए ही औपचारिक स्रोत से मिला। सरकारी नीतियों का पूरा लाभ नहीं
रिपोर्ट में कहा गया कि एमएसएमई कार्यबल के एक बड़े हिस्से में औपचारिक व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण का अभाव है, जो उत्पादकता को प्रभावित करता है। कई एमएसएमई आरएंडडी, गुणवत्ता सुधार या इनोवेशन में पर्याप्त निवेश करने में विफल रहते हैं, जिससे राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों में मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है। एमएसएमई को समर्थन देने वाली विभिन्न नीतियों और दिए गए प्रोत्साहन के बावजूद कम जागरुकता के कारण एमएसएमई सरकारी नीतियों का पूरा लाभ नहीं ले पा रहे हैं।