इन्वेस्टमेंट की परंपरागत रणनीति अपना रहे न्यायाधीश
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की कुल वित्तीय संपत्ति 128.50 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसमें से 67% से अधिक, यानी 86.19 करोड़ रुपये, उन्होंने बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) और अन्य सुरक्षित वित्तीय साधनों में जमा किए हैं। यह उनके रूढ़िगत और जोखिम-रहित निवेश दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहां पूंजी की सुरक्षा और सुनिश्चित रिटर्न उनकी प्राथमिकता है। इसके अलावा, 19.8% राशि, यानी 25.44 करोड़ रुपये, उन्होंने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ), और सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) जैसे सरकारी गारंटी वाले निवेश विकल्पों में लगाए हैं। दिलचस्प बात यह है कि शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड जैसे जोखिम भरे निवेश में उनकी हिस्सेदारी महज 13.13% यानी 16.87 करोड़ रुपये है। यह स्पष्ट करता है कि सुप्रीम कोर्ट के जज अपनी संपत्ति को बाजार की अस्थिरता से बचाने के लिए सतर्क और परंपरागत रणनीति अपनाते हैं। रिस्क लेने से नहीं चूक रहे केंद्रीय मंत्री
दूसरी ओर, केंद्रीय मंत्रियों का निवेश दृष्टिकोण इससे बिल्कुल उलट है। उन्होंने अपनी कुल संपत्ति का 72% से अधिक, यानी 149.09 करोड़ रुपये, शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड में निवेश किया है। ये निवेश विकल्प उच्च रिटर्न की संभावना तो रखते हैं, लेकिन बाजार की अनिश्चितता के कारण इन्हें जोखिम भरा भी माना जाता है। इसके विपरीत, उनके बैंक जमा खातों में केवल 53.22 करोड़ रुपये हैं, जो उनके कुल निवेश का एक छोटा हिस्सा है। यह साहसिक दृष्टिकोण दर्शाता है कि केंद्रीय मंत्री उच्च रिटर्न की चाह में जोखिम लेने को तैयार हैं और बाजार की उतार-चढ़ाव भरी गतिशीलता में विश्वास रखते हैं।
यह अंतर न केवल दोनों समूहों के वित्तीय दृष्टिकोण को उजागर करता है, बल्कि उनके व्यक्तित्व और पेशेवर पृष्ठभूमि को भी प्रतिबिंबित करता है। सुप्रीम कोर्ट के जज, जो अपने निर्णयों में संतुलन और स्थिरता के लिए जाने जाते हैं, निवेश में भी उसी सतर्कता को अपनाते हैं। वहीं, केंद्रीय मंत्री, जो नीति निर्माण और गतिशील राजनीतिक माहौल में काम करते हैं, जोखिम लेने की प्रवृत्ति को अपने वित्तीय फैसलों में भी दर्शाते हैं।