सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के मुताबिक मानको का पालन जरूरी
परिवहन अधिकारी मधु सिंह ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय और शासन के स्पष्ट निर्देश हैं कि स्कूली वाहनों में किसी भी प्रकार की लापरवाही न हो। फिटनेस प्रमाण पत्र, फायर सेफ्टी, स्पीड गवर्नर, सीसीटीवी कैमरे, महिला अटेंडेंट की नियुक्ति, जीपीएस ट्रैकिंग और आपातकालीन निकास जैसे तमाम सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। लेकिन छतरपुर जिले के कई स्कूल अब तक इन मानकों की अनदेखी कर रहे हैं, जिससे छात्रों की जान जोखिम में पड़ रही है।
इस तरह की खामियां आईं सामने
जांच में सामने आया कि कई बसों में फिटनेस प्रमाणपत्र की अवधि समाप्त हो चुकी है, वहीं कुछ वाहनों में जरूरी सुरक्षा उपकरण तक मौजूद नहीं हैं। कुछ स्कूलों ने तो बसों के नियमित मेंटेनेंस तक नहीं कराए, जिससे तकनीकी खराबी का खतरा बना रहता है। परिवहन अधिकारी ने स्पष्ट किया कि यह बच्चों की जान से खिलवाड़ है और अब इस पर कोई समझौता नहीं होगा।
सुधार नहीं तो लाइसेंस होगा निरस्त
मधु सिंह ने सभी निजी स्कूल संचालकों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि यदि तय समय सीमा के भीतर वाहनों को फिटनेस मानकों के अनुरूप नहीं लाया गया, तो संबंधित स्कूलों के खिलाफ न सिर्फ परिवहन नियमों के तहत जुर्माना और लाइसेंस निलंबन जैसी कार्रवाई की जाएगी, बल्कि आवश्यकता पडऩे पर एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है। परिवहन विभाग की इस सख्ती से स्कूल प्रबंधन में हडक़ंप मचा है। विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में यह अभियान और तेज़ किया जाएगा, ताकि जिले के हर स्कूल वाहन को नियमों के दायरे में लाया जा सके और विद्यार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
सर्वोच्च न्यायालय के ये हैं दिशा-निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 में स्कूल बसों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिन्हें बाद में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी लागू किया। इन दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:- बसों का रंग पीला होना चाहिए और स्कूल बस का चिन्ह स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए।- बसों की खिड़कियों पर काले कांच या पर्दे नहीं होने चाहिए।- सभी बसों में अग्निशमन यंत्र, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स और आपातकालीन निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।- बसों में गति नियंत्रक (स्पीड गवर्नर) और जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम होना चाहिए।- बसों में चालक और परिचालक का मेडिकल परीक्षण और आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच अनिवार्य है।- बसों की उम्र 12 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।- स्कूलों को एक वरिष्ठ शिक्षक या कर्मचारी को वाहन प्रभारी नियुक्त करना होगा, जो बसों की स्थिति और सुरक्षा मानकों की निगरानी करेगा।