पहली डीपीआर में गड़बड़ी आई थी सामने
नगर पालिका छतरपुर द्वारा पहले चरण में योजना के चार डीपीआर बनाकर कुल 6075 हितग्राहियों को आवास स्वीकृत किए गए थे। कागजों पर तो यह बड़ी उपलब्धि दिखती है, लेकिन जब हकीकत की जांच की गई तो पता चला कि इनमें से 311 लाभार्थियों ने आवंटित राशि का गलत उपयोग किया या मकान निर्माण शुरू ही नहीं किया। इन हितग्राहियों ने एक या दो किस्त लेकर निर्माण बंद कर दिया, और आज तक ईंट तक नहीं लगाई गई।
जियो टैगिंग न होने से हुई परेशानी
इस लापरवाही के पीछे सिर्फ हितग्राही ही नहीं, बल्कि नगर पालिका के कुछ जिम्मेदार अधिकारी भी दोषी हैं। जांच में यह बात भी सामने आई कि कुछ मामलों में निर्माण शुरू होने के बावजूद जानबूझकर जियो टैगिंग नहीं की गई, जिससे लाभार्थियों को अगली किस्त नहीं मिली। इस वजह से कई ऐसे गरीब भी निर्माण अधूरा छोडऩे को मजबूर हो गए, जो वास्तव में पात्र थे।
चार डीपीआर में 311 ने नहीं बनाए घर
नगर पालिका ने जिन चार डीपीआर के तहत 6075 लोगों को लाभ दिया, उनमें प्रथम डीपीआर में 1556,द्वितीय में 2100,तृतीय में 1522,चतुर्थ डीपीआर में 878 लाभार्थी शामिल थे। इनमें से प्रथम डीपीआर में 13, द्वितीय में 120, तृतीय में 140 और चतुर्थ डीपीआर में 38 ऐसे हितग्राही पाए गए जिन्होंने या तो मकान नहीं बनाया या निर्माण अधूरा छोड़ दिया। इन 311 लोगों में से 13 के खिलाफ कुर्की की कार्रवाई का प्रस्ताव भी बनाया गया, लेकिन अब तक उस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अब नए चरण में फिर धीमी शुरुआत, 4210 प्रस्तावों में से सिर्फ 27 को मंजूरी
नगर पालिका ने प्रधानमंत्री आवास योजना-2.0 के तहत 4210 नए आवेदनों का प्रस्ताव शासन को भेजा है। इनमें 3600 बीएलसी योजना के लिए, 510 होम लोन ब्याज सब्सिडी योजना के लिए और 100 किराए वाले मकानों की योजना के लिए आवेदन शामिल हैं। लेकिन इन सभी में से अब तक सिर्फ 27 लाभार्थियों को ही आवास स्वीकृत किया गया है, जो योजना की धीमी प्रगति और सिस्टम की उदासीनता को उजागर करता है। कई पात्र लोगों के आवेदन वर्षों से अटके हुए हैं, और कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही कि उन्हें लाभ कब मिलेगा।
कल्याणी महिलाएं उपेक्षित
योजना का उद्देश्य वंचित वर्गों को प्राथमिकता देना है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। वार्ड क्रमांक 1 से 10 तक की सूची में कुल 200 स्वीकृत आवेदनों में सिर्फ 10 कल्याणी (विधवा) महिलाओं को ही शामिल किया गया है। यह स्थिति तब है जब प्रत्येक वार्ड में 40 से अधिक कल्याणी ऐसी हैं जो आवास की पात्रता रखती हैं और जिनके पास आज भी पक्की छत नहीं है। इनमें से कई महिलाएं अपने पति की मृत्यु के बाद पूरी तरह बेसहारा हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें योजना में उचित प्राथमिकता नहीं मिल रही।
हितग्राहियों की जमीनी परेशानी
बीएलसी योजना के तहत लाभार्थियों को 2.50 लाख रुपए की राशि तीन किश्तों में दी जाती है। पहली किस्त एक लाख रुपए की होती है, जो जमीन की जियो टैगिंग के बाद जारी की जाती है। अगली किश्तें निर्माण की प्रगति के आधार पर जारी होती हैं। कई मामलों में या तो जियो टैगिंग में जानबूझकर देरी की गई या रिपोर्ट ही नहीं भेजी गई, जिससे पात्र लोगों का निर्माण रुक गया। कुछ लाभार्थियों ने बताया कि वे निर्माण शुरू करना चाहते थे लेकिन नगर पालिका द्वारा तकनीकी मंजूरी, सर्वे या टैगिंग में देरी की वजह से निर्माण अटक गया। कई लोग ऐसे भी हैं जो मजदूरी कर किसी तरह यह योजना का लाभ लेना चाहते थे, लेकिन उन्हें सिस्टम ने ही रोक दिया।
इनका कहना है
सरकार को नए प्रस्ताव भेजे गए हैं। जैसे-जैसे स्वीकृति प्राप्त होती है, सूची जारी की जाती है। लाभार्थियों का सर्वे कर पात्रता के आधार पर चयन किया जा रहा है। माधुरी शर्मा, सीएमओ