क्या है नाइट्रेट
नाइट्रेट मुख्यत:अकार्बनिक है। यह ऑक्सीडायजिंग एजेंट का काम करता है और विस्फोटक बनाने में भी इस्तेमाल होता है। पोटेशियम नाइट्रेट शीशा निर्माण उद्योग में तो सोडियम नाइट्रेट खाद्य प्रसंस्करण में इस्तेमाल होता है।
यह भी है वजह
शहरी इलाकों में भूमिगत जल में नाइट्रेट की मात्रा सामान्य पाई जाती है। गांवों के भूमिगत जल में इसकी ज्यादा मात्रा की बड़ी वजह है खेतों में यूरिया सरीखे रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल होना भी है। इंसान 80 से 90 प्रतिशत नाइट्रेट सब्जियों से लेता है। लेकिन, इससे बीमारी की गुंजाइश कम रहती है। क्योंकि इसकी बहुत ही कम मात्रा नाइट्राइट में बदलती है।खेती-मछली पालन पर भी असर
नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक उपयोग से कृषि जमीन की उत्पादक क्षमता घटती है। पानी में नाइट्रेट की अधिकता के कारण में अवांछित शैवाल की वृद्धि से मछली उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
मापदण्ड से ज्यादा है स्तर
स्वास्थ्य के लिए पानी में नाइट्रेट का सुरक्षित स्तर 45 मिलीग्राम माना गया है। इसके विपरीत जिले के पारी खेड़ा गांव के पानी में इसका स्तर 525 मिलीग्राम है। इसी तरह बड़ीसादड़ी के परबती गांव में 293 मिग्रा, पायरों का खेड़ा में 353, बड़वल में 182, भियाणा में 181, भुरकिया कलां में 109, सरथला 122, कचुमरा में 157, पण्डेडा में 342 और बुल गांव में 220 मिलीग्राम पाया गया।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता का सर्वाधिक दुष्प्रभाव दुधमुंहे और छोटे बच्चों को झेलना पड़ता है। इससे बच्चों में ’ब्लू बेबी’ उर्फ नीलापन रोग की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसमें बच्चे के पाचन व श्वसन तंत्र में दिक्कत आती है। आंतों के कैंसर का खतरा होता है।यहां तक कि ब्रेन डैमेज या मौत तक हो सकती है। यह शरीर में ऑक्सीजन को विभिन्न अंगों तक लाने-ले जाने का काम करने वाले हिमोग्लोबिन का स्वरूप भी बिगाड़ देता है। लिहाजा ऑक्सीजन उत्तकों तक नहीं पहुंच पाती। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में 7.8 लाख लोग प्रदूषित पानी व गंदगी से बीमारियों से मरते हैं।