scriptराजस्थान के 150 गांवों के ‘अमृत’ में घुल रहा धीमा जहर, देश में सालाना 7.8 लाख मौतें | Slow poison is getting mixed in the 'amrit' of these 150 villages of Rajasthan… Know the danger of these deadly diseases | Patrika News
चित्तौड़गढ़

राजस्थान के 150 गांवों के ‘अमृत’ में घुल रहा धीमा जहर, देश में सालाना 7.8 लाख मौतें

चित्तौडग़ढ़ जिले के करीब डेढ़ सौ गांवों में बच्चों पर ब्लू बेबी सिण्ड्रोम और बड़ों पर गुर्दे और लीवर खराब होने का खतरा मंडरा रहा है। इसकी वजह इन गांवों के पानी में नाइट्रेट की मात्रा बहुत अधिक होना है।

चित्तौड़गढ़Jul 04, 2025 / 02:19 pm

anand yadav

चित्तौड़गढ़ में 150 गांव पानी में नाइट्रेट से प्रभावित, पत्रिका फोटो

Drinking water contamination Rajasthan: चित्तौडग़ढ़ जिले के करीब डेढ़ सौ गांवों में बच्चों पर ब्लू बेबी सिण्ड्रोम और बड़ों पर गुर्दे और लीवर खराब होने का खतरा मंडरा रहा है। इसकी वजह इन गांवों के पानी में नाइट्रेट की मात्रा बहुत अधिक होना है। कई गांवों में तो इसकी मात्रा निर्धारित से बारह गुना तक ज्यादा पाई गई है। इस संबंध में राज्य सरकार को भी रिपोर्ट भिजवाई जा चुकी है।
जिले के ग्रामीण अंचल में पीने के पानी को फिल्टर करने के कोई इंतजाम नहीं होने के कारण यहां की आबादी ट्यूबवैल और हैण्डपम्प के पानी पर निर्भर हैं। पानी में नाइट्रेट की अधिक मात्रा किडनी और लीवर को प्रभावित करने के साथ ही बच्चों को ब्लू बेबी सिण्ड्रोम का शिकार बना सकती है।

क्या है नाइट्रेट

नाइट्रेट मुख्यत:अकार्बनिक है। यह ऑक्सीडायजिंग एजेंट का काम करता है और विस्फोटक बनाने में भी इस्तेमाल होता है। पोटेशियम नाइट्रेट शीशा निर्माण उद्योग में तो सोडियम नाइट्रेट खाद्य प्रसंस्करण में इस्तेमाल होता है।
पानी में घुला नाइट्रेट जहर, पत्रिका फोटो

यह भी है वजह

शहरी इलाकों में भूमिगत जल में नाइट्रेट की मात्रा सामान्य पाई जाती है। गांवों के भूमिगत जल में इसकी ज्यादा मात्रा की बड़ी वजह है खेतों में यूरिया सरीखे रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल होना भी है। इंसान 80 से 90 प्रतिशत नाइट्रेट सब्जियों से लेता है। लेकिन, इससे बीमारी की गुंजाइश कम रहती है। क्योंकि इसकी बहुत ही कम मात्रा नाइट्राइट में बदलती है।

खेती-मछली पालन पर भी असर

नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक उपयोग से कृषि जमीन की उत्पादक क्षमता घटती है। पानी में नाइट्रेट की अधिकता के कारण में अवांछित शैवाल की वृद्धि से मछली उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में नाइट्रेट, पत्रिका फोटो

मापदण्ड से ज्यादा है स्तर

स्वास्थ्य के लिए पानी में नाइट्रेट का सुरक्षित स्तर 45 मिलीग्राम माना गया है। इसके विपरीत जिले के पारी खेड़ा गांव के पानी में इसका स्तर 525 मिलीग्राम है। इसी तरह बड़ीसादड़ी के परबती गांव में 293 मिग्रा, पायरों का खेड़ा में 353, बड़वल में 182, भियाणा में 181, भुरकिया कलां में 109, सरथला 122, कचुमरा में 157, पण्डेडा में 342 और बुल गांव में 220 मिलीग्राम पाया गया।
टाण्डा में 205, गाडरियावास में 210, कपासन क्षेत्र के जाशमा में 210, मालीखेड़ा में 290, निलोद में 230, बंजारा खेड़ा में 220, पारीखेड़ा में 525, पारी में 325, शिव नगर में 365, करजाली में पानी में नाइट्रेट की मात्रा 233 मिलीग्राम है। यह तो सिर्फ उदाहरण है। जिले में ऐसे ही करीब डेढ़ सौ गांव हैं, जहां लोगों के शरीर में पानी के साथ नाइट्रेट की अत्यधिक मात्रा पहुंच रही है।
गांवों में शुद्ध पेयजल आपूर्ति की दरकार, पत्रिका फोटो

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता का सर्वाधिक दुष्प्रभाव दुधमुंहे और छोटे बच्चों को झेलना पड़ता है। इससे बच्चों में ’ब्लू बेबी’ उर्फ नीलापन रोग की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसमें बच्चे के पाचन व श्वसन तंत्र में दिक्कत आती है। आंतों के कैंसर का खतरा होता है।
यहां तक कि ब्रेन डैमेज या मौत तक हो सकती है। यह शरीर में ऑक्सीजन को विभिन्न अंगों तक लाने-ले जाने का काम करने वाले हिमोग्लोबिन का स्वरूप भी बिगाड़ देता है। लिहाजा ऑक्सीजन उत्तकों तक नहीं पहुंच पाती। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में 7.8 लाख लोग प्रदूषित पानी व गंदगी से बीमारियों से मरते हैं।

इनका कहना है…

शरीर में आवश्यकता से अधिक नाइट्रेट जाने से आमाशय का कैंसर व ब्लड कैंसर हो सकता है। नाइट्रेट शरीर में हिमोग्लोबिनिया का स्वरूप बदल देता है, इससे सांस लेने में तकलीफ, बच्चों में ब्लू बेबी सिण्ड्रोम, लीवर व गुर्दे पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा थायरॉइड और होर्मोंस भी प्रभावित हो सकते हैं। – डॉ. मधुप बक्षी, वरिष्ठ फिजीशियन, चित्तौडग़ढ़

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