भारतीय टीम 1983 में वैश्विक स्तर पर कमजोर टीमों में गिनी जाती थी। विश्व कप में कपिल देव की कप्तानी में भारतीय टीम एक ‘अंडरडॉग’ की तरह गई थी। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि भारतीय टीम विजेता बनकर उभरेगी। खुद भारतीय टीम को भी नहीं। लेकिन, जिससे अपेक्षा कम होती है, वही इतिहास रचता है। 1983 वनडे विश्व कप में 60 ओवरों का खेला गया था। फाइनल में भारत और वेस्टइंडीज आमने-सामने थे। वेस्टइंडीज पिछले दो विश्व कप जीत चुकी थी, इसलिए भारत के लिए मैच कहीं से भी आसान नहीं था।
वेस्टइंडीज ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी चुनी थी। पहले बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम 54.4 ओवर में 183 रन पर सिमट गई। सलामी बल्लेबाज के. श्रीकांत ने सबसे ज्यादा 38 रन बनाए थे। संदीप पाटिल ने 27 और मोहिंदर अमरनाथ ने 26 रन बनाए थे। वेस्टइंडीज के लिए एंडी रॉबर्ट्स ने तीन, मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग और लैरी गोम्स ने 2-2 विकेट लिए। जोएल गार्नर को एक विकेट मिला था।
184 रन का लक्ष्य वेस्टइंडीज के लिए मुश्किल नहीं था। लेकिन, भारतीय गेंदबाज उस दिन इतिहास रचने के इरादे से उतरे थे। मदन लाल, मोहिंदर अमरनाथ 3-3, बलविंदर संधू के 2 और कपिल देव और रोजर बिन्नी के 1-1 विकेट की मदद से भारत ने वेस्टइंडीज को 52 ओवर में 140 रन पर समेट दिया। विवियन रिचर्ड्स ने सबसे ज्यादा 33 रन बनाए। भारतीय टीम की इस करिश्माई और ऐतिहासिक जीत ने भारत में क्रिकेट को पूरी तरह बदल दिया। भारत की यह जीत कभी हार न मानने और किसी भी स्थिति से जीत हासिल करने की प्रेरणा के रूप में अंकित है।