किसने की शंकराचार्य की शुरुआत
सनातन धर्म के दार्शनिक और धर्मगुरु रहे आदि शंकराचार्य ने इस परंपरा की शुरुआत की। आदि शंकराचार्य को सनातन धर्म के सबसे महान प्रतिनिधि माना जाता है। इन्होने सनातन धर्म की अलख जगाते हुए देश के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए और दशनामी संप्रदाय की स्थापना भी की।कौन होते हैं शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित हिंदू धर्म के चार प्रमुख मठों के प्रमुखों को शंकराचार्य की उपाधि दी जाती है। ये मठ अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए स्थापित किए गए थे। इन चारों मठों के नाम इस प्रकार हैं।शारदामठ (पश्चिम) – गुजरात के द्वारका में स्थित
गोवर्धन मठ (पूर्व) – ओडिशा के पुरी में स्थित
श्रृंगेरी मठ (दक्षिण) – कर्नाटक के श्रृंगेरी में स्थित इन चारों मठों के प्रमुख को ही शंकराचार्य कहा जाता है। यह आदि गुरु शंकराचार्य के बताए गए नियमों को पालन करते हैं। साथ ही अपने ज्ञान से सनातन धर्म को प्रकाशवान और धर्म रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।
मठाधीश बनने की प्रिक्रिया
शंकराचार्य बनने की एक निर्धारित नियम होते हैं। जिसमें साधक को संन्यासी होना आवश्यक है साथ ही दसनामी संप्रदाय का संन्यासी होना चाहिए। उम्मीदवार को वेद, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और भगवद गीता का गहरा ज्ञान होना चाहिए।शंकराचार्य बनने के लिए यहां गुरु और शिष्य पंरपरा को निभाया जाता है। जब किसी मठ के वर्तमान शंकराचार्य ब्रह्मलीन होते हैं, तो वे अपने जीवनकाल में ही एक योग्य उत्तराधिकारी चुनते हैं। नए शंकराचार्य की मान्यता धर्माचार्यों और समाज द्वारा दी जाती है।