विशेषज्ञों की राय: मोबाइल और Cancer का कोई सीधा संबंध नहीं
डॉ. पंकज जैन ने कहा मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरण रेडियो फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक श्रेणी की नॉन आयोनाइजिंग,लो एनर्जी रेडिएशन होती है जो मानव शरीर के डीएनए को सीधे नुकसान नहीं पहुंचाती है क्योंकि रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरणों द्वारा मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए विकिरणों द्वारा शरीर का तापमान बढ़ना जरूरी है लेकिन वर्तमान टेक्नोलॉजी में प्रयुक्त रेडियो फ्रीक्वेंसी स्तर मानव शरीर के तापमान में नगण्य वृद्धि ही करता है इसलिए अभी यह कहना उपयुक्त होगा कि मोबाइल उपयोग का कैंसर से सीधा संबंध साबित नहीं हुआ है । दीर्घ कालिक खतरों का पता समय बीतने के साथ आने वाले लम्बी अवधि के शोधों से ही लग पाएगा ।रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरण और मानव शरीर
मोबाइल फोन और वाई-फाई डिवाइस रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) विकिरण उत्सर्जित करते हैं। यह नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन का एक प्रकार है, जो एक्स-रे या गामा किरणों की तरह शक्तिशाली नहीं होता और डीएनए को सीधे नुकसान नहीं पहुंचाता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंटरनेशनल रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) के अनुसार, रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरण को “संभावित रूप से कैंसरकारी” (ग्रुप 2B) श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है।क्या कहते हैं अब तक के शोध?
अमेरिका और यूरोप में इस विषय पर कई अध्ययन किए गए हैं। कुछ शोधों में यह पाया गया कि जो लोग अत्यधिक मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं, उनमें ब्रेन ट्यूमर (ग्लियोमा) का थोड़ा अधिक जोखिम हो सकता है, लेकिन इस निष्कर्ष को लेकर वैज्ञानिक अभी भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं।मोबाइल का संतुलित उपयोग ही है सही समाधान
विशेषज्ञों की सलाह है कि मोबाइल फोन का जरूरत से ज्यादा उपयोग करने से बचना चाहिए। कुछ जरूरी सावधानियां अपनाकर मोबाइल के संभावित खतरों को कम किया जा सकता है:– ईयरफोन या स्पीकर मोड का उपयोग करें
– मोबाइल कॉल्स की अवधि को कम करें
– मोबाइल को शरीर के बेहद करीब न रखें अब तक के शोधों में यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि मोबाइल फोन का सीधा संबंध कैंसर (Cancer) से है। हालांकि, मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से अन्य स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे तनाव, नींद में बाधा और एकाग्रता में कमी हो सकती है। इसलिए, बेहतर यही होगा कि मोबाइल का इस्तेमाल सीमित रखा जाए और स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहा जाए।