जब समाज में एकल परिवार की परंपरा तेजी से बढ़ रही है और रिश्ते व्यस्तताओं में बंधते जा रहे हैं, ऐसे समय में जांगड़ा परिवार न सिर्फ एक संयुक्त परिवार को जीवंत रखे हुए है, बल्कि यह भी साबित कर रहा है कि एकता में ही शक्ति है। यह परिवार आने वाली पीढिय़ों के लिए यह संदेश देता है कि संयुक्त परिवार सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन का संतुलन और सहारा भी है।
यह प्रेरणादायी यात्रा वर्ष 1942 में शुरू हुई, जब मोहनलाल जांगड़ा राजस्थान के पाली जिले के जैतारण से कोप्पल आकर बसे। उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एक दिन यह परिवार 53 सदस्यों तक विस्तृत होगा और समाज के लिए आदर्श बन जाएगा।
आज इस परिवार में चार पीढिय़ों के लोग एकजुट होकर रहते हैं। परिवार की सबसे वरिष्ठ सदस्य 82 वर्षीय कमला बाई हैं, जबकि सबसे छोटी सदस्य 14 महीने की हिया हैं। एक समय ऐसा था जब सभी सदस्य पुश्तैनी मकान में ही रहते थे। लेकिन जैसे-जैसे परिवार बड़ा हुआ, करीब दस साल पहले कुछ सदस्य पास ही दूसरे मकानों में शिफ्ट हुए। बावजूद इसके, रिश्तों में नजदीकियां आज भी जस की तस हैं।
व्यवसाय के क्षेत्र में भी यह परिवार संगठित होकर आगे बढ़ रहा है। मक्के के एक्सपोर्ट का प्रमुख व्यापार है, जो सिंगापुर, मलेशिया, दुबई, वियतनाम जैसे देशों तक फैला है। इसके अलावा परिवार रियल एस्टेट और मोबाइल बिजनेस में भी सक्रिय है। खास बात यह है कि सभी व्यवसाय पारिवारिक साझेदारी के साथ चलते हैं।
राजस्थान के पाली जिले के जैतारण से मोहनलाल जांगड़ा वर्ष 1942 में कोप्पल आए। फिर उनके चारों बेटे भंवरलाल, माणिकचन्द, मोतीलाल एवं महावीरचन्द जांगड़ा भी कोप्पल के ही होकर रह गए। वर्तमान में भंवरलाल के बेटे विमलचन्द, विजयकुमार एवं जीतेन्द्र, माणिकचन्द के बेेटे गौतमचन्द एवं कमलचन्द, मोतीलाल के बेटे ज्ञानचन्द एवं अजयकुमार और महावीरचन्द के बेटे राजेश, अश्विनकुमार एवं पवनकुमार अब व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं।
मोहनलाल जांगड़ा के पोते अश्विन कुमार जांगड़ा कहते हैं, संयुक्त परिवार की खूबसूरती यह है कि परिवार के सदस्य एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते हैं। तनाव और अकेलेपन की भावना नहीं रहती। बच्चे और बुज़ुर्ग भावनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं। बुज़ुर्गों को अकेलापन महसूस नहीं होता और उनकी देखभाल बेहतर ढंग से होती है। उनका अनुभव और मार्गदर्शन परिवार के लिए अमूल्य होता है। बच्चे दादा-दादी से लेकर परिवार के बड़ों से संस्कार, अनुभव और नैतिक मूल्य सीखते हैं। संयुक्त परिवार में बच्चे अनुशासन, सहयोग और सामाजिकता जैसे गुणों को प्राकृतिक रूप से सीखते हैं। घर के कामों का बंटवारा हो जाता है, जिससे किसी एक पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ता। महिलाएं भी अपने करियर या रुचियों को समय दे सकती हैं। आपात स्थितियों में परिवार के सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं। चाहे वह बीमारी हो, आर्थिक समस्या हो या कोई और संकट। धार्मिक आस्था भी परिवार को जोड़े रखने का बड़ा माध्यम है। पर्युषण पर्व को पूरी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। कई सदस्य उपवास व तपस्या करते हैं, जो परिवार की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं।