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हुबली

जहां न पहुंचे बैलगाड़ी वहां पहुंचे मारवाड़ी…पिछले चार दशक में कर्नाटक अधिक आए राजस्थानी, बिजनेस के लिहाज से अच्छा वातावरण

एक कहावत है कि जहां न पहुंचे बैलगाड़ी वहां पहुंचे मारवाड़ी। इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए राजस्थान के लोगों ने अपनी काबिलियत का डंका बजाते हुए न केवल बुलंदियों को छुआ बल्कि देश-विदेश में राजस्थानियों का नाम ऊंचा किया। राजस्थान के लोग जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत व लगन से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं। कर्नाटक में रहने वाले प्रवासियों के दिल में अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हमेशा ही दिल में हिलोरे लेता रहता है। प्रवासी राजस्थानियों ने जहां दक्षिण की धरा पर अपनी मेहनत एवं लगन से व्यवसाय को उंचाइयों पर पहुंचाया वहीं अपनी जड़ों से जुड़े रहकर अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज एवं परम्पराओं को जिंदा रखे हुए हैं। व्यवसाय के साथ ही सामाजिक सरोकारों के माध्यम से भी राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। राजस्थानी समाज के लोंगों का कर्नाटक के विकास में दिए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कोरोना के समय उनकी सेवाएं जगजाहिर रहीं। प्रस्तुत हैं राजस्थान मूल के लोगों से कर्नाटक के विकास में दिए गए उनके योगदान को लेकर हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

हुबलीMar 21, 2025 / 10:43 am

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

प्रवासियों का कर्नाटक के विकास में योगदान विषयक परिचर्चा में अपने विचार रखते प्रवासी।

प्रवासियों का कर्नाटक के विकास में योगदान विषयक परिचर्चा में अपने विचार रखते प्रवासी।

मेहनत व लगन से बिजनेस को दी उंचाइयां
राजस्थान के बालोतरा जिले के मोकलसर निवासी रमेश बाफना ने कहा, मेरे पिता वागमल बाफना वर्ष 1946 में कुंदगोल आए थे। बाद में वर्ष 1965 में हुब्बल्ली शिफ्ट हो गए। कर्नाटक का प्रवासी समाज कई धार्मिक, सामाजिक सेवा कार्य में अग्रणी बना हुआ है। राजस्थान के लोगों में समर्पण व मेहनत कूट-कूट कर भरी है। प्रवासी राजस्थानी अपनी मातृभूमि के साथ कर्मभूमि के लिए भी योगदान देते रहे हैं। कर्नाटक के साथ ही राजस्थान के विकास कार्य में उनका योगदान रहा है। प्रवासी राजस्थानियों ने व्यवसाय के साथ ही सामाजिक सरोकारों के माध्यम से राजस्थान का नाम देश-विदेश में रोशन किया है। पुराने जमाने में बैलगाड़ी से दक्षिण की धरा पर पहुंचे राजस्थानी अपनी मेहनत एवं लगन से व्यवसाय की उंचाइयों पर पहुंचे है।
हर क्षेत्र में दे रहे योगदान
बालोतरा जिले के कोटड़ी निवासी हीराचन्द तातेड़ ने कहा, मेरे बड़े भाई 1952 में कर्नाटक आ गए थे। मैंने आठवीं तक की पढ़ाई राजस्थान में की और बाद में हुब्बल्ली आ गया। हुब्बल्ली में प्रवासी राजस्थानियों को एक सूत्र में पिरोने एवं उनकी आवाज को बुलंद करने में कई संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। राजस्थान के लोग आज सभी जगह है। वे अपने कर्मों से एक मुकाम हासिल किए हैं। साथ ही अपनी मातृभूमि से दूर रहते हुए अपनी जड़ों से पीढ़ी से जुड़े हुए हैं और अपने क्षेत्र के क्रमबद्ध विकास में भागीदार बने हुए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में समय-समय पर योगदान देते रहे हैं।
समय-समय पर कर रहे सहयोग
जालोर जिले के थलवाड़ निवासी उदाराम प्रजापत ने कहा, मैंने तीन वर्ष पुणे में काम किया। बाद में वर्ष 1979 में हुब्बल्ली आया। हुब्बल्ली में राजस्थान मूल के लोग विभिन्न सेवा कार्य में भी अग्रणी रूप से योगदान देते हैं। हुब्बल्ली में बाबा रामदेव का मंदिर वर्ष 1990 में बना। प्रवासी राजस्थानी समय-समय पर विभिन्न सुविधाओं के लिए सहयोग देते रहे हैं। जहां-जहां प्रवासी राजस्थानी बसे, वहां आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान की और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया। हम अपनी नई पीढ़ी को हमारे पुरखों के इतिहास के बारे में जरूर बताएं।
अब दक्षिण की तरफ आने की रफ्तार कम हुई
जालोर जिले के धानसा निवासी वेलाराम घांची ने कहा, मैं वर्ष 1988 में हुब्बल्ली आया। पहले राजस्थान से कर्नाटक आने का क्रम अधिक था। लेकिन अब राजस्थान से गुजरात की तरफ झुकाव बढ़ा है। बिजनेस की यदि बात की जाएं तो मौजूदा समय में पहले की तुलना में बिक्री बढ़ी हैैं लेकिन प्रोफिट कम हुआ हैं। हालांकि वर्तमान में भी राजस्थान से दक्षिण की तरफ आने का क्रम तो बना हुआ हैं हालांकि पहले की तुलना में आने की रफ्तार थोड़ी कम हुई है।
प्रवासी समाज के लोग सेवा कार्य में अग्रणी
बालोतरा जिले के सराणा निवासी जामताराम देवासी ने कहा, मैं वर्ष 1981 में हुब्बल्ली आया। देवासी समाज केे लोग विभिन्न धार्मिक-सामाजिक सेवा कार्य में आगे रहते हैं। होली, दिवाली एवं महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाते हैं। देवासी समाज के साथ ही अन्य प्रवासी समाज भी कर्नाटक में दीपावली समेत अन्य पर्व-त्योहार उत्साह के साथ मना रहे हैं। होली का पर्व भी उमंग व उल्लास के साथ मनाया जाता है।
सामाजिक रिश्तों में आ रही मजबूती
बाड़मेर जिले के रामजी का गोल निवासी नैनाराम विश्नोई ने कहा, मैं वर्ष 1991 में हुब्बल्ली आया। विश्नोई समाज के सांचौर एवं गुड़ामालानी क्षेत्र के लोग हुब्बल्ली में अधिक है। वर्तमान में हुब्बल्ली के पास बुदरसिंघी में विश्नोई समाज का भवन बनाया जा रहा है। हुब्बल्ली में कई समाज स्नेह मिलन समारोह भी रखते हैं। इसके माध्यम से आपसी परिचय के साथ ही सामाजिक रिश्तों में मजबूती आती है। हालांकि समय के अनुसार थोड़ा बदलाव जरूर आया है बावजूद हम अपनी परम्पराएं एवं रीति-रिवाज को बनाए रखे हुए हैं।
नई पीढ़ी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही
बालोतरा जिले के अजीत निवासी पारसमल दर्जी ने कहा, मैं वर्ष 1989 में हुब्बल्ली आया। दर्जी समाज के अधिकांश लोग यहां बालोतरा, बाड़मेर एवं जालोर जिले से हैं। हालांकि समाज के लोग अपने पुश्तैनी कार्य से दूर होने लगे हैं। नई पीढ़ी अब शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रही है।
एक दूसरे के सुख-दुख में सहभागी
पाली जिले के कोसेलाव निवासी धर्मेन्द्र माली ने कहा, मैं वर्ष 1998 में हुब्बल्ली आया। माली समाज के लोग यहां गुरु पूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मना रहे हैं। सभी समाजों के लोग आपस में हिलमिल कर रहते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी बनते हैं।
पहले की तुलना में आवागमन के साधन अधिक
पाली जिले के बाली निवासी रामलाल जणवा चौधरी ने कहा, मैं वर्ष 1988 से हुब्बल्ली में निवास कर रहा हूं। पहले राजस्थान से कर्नाटक के लिए आवागमन के साधन कम थे लेकिन अब परिवहन की अच्छी सुविधा हुई हैं। हवाई सेवा की सुविधा भी उपलब्ध हुई है। सप्ताह में पांच से छह दिन ट्रेन की सुविधा भी है। बसें भी राजस्थान तक जा रही है।

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