शोध दल के प्रमुख प्रो. संदीप चौधरी के अनुसार, खाद्य अपशिष्ट के सड़ने पर कार्बन डाईऑक्साइड गैस निकलती है। यह गैस बैक्टीरिया के साथ मिलकर कॉन्क्रीट में मौजूद कैल्शियम को कैल्शियम कार्बोनेट नामक ठोस क्रिस्टल में बदलती है। यह क्रिस्टल उसमें मौजूद दरारों और छिद्रों को भी भर देते हैं, जिससे कॉन्क्रीट ज्यादा ठोस और टिकाऊ हो जाता है। इससे मकान और इमारतें ज्यादा समय तक टिकती हैं और उनके रख-रखाव पर खर्च भी कम होता है।
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शोध दल में शामिल प्रो. हेमचंद्र झा ने बताया- पहले कॉन्क्रीट मजबूत करने महंगे रसायनों का उपयोग होता था। इससे यह प्रक्रिया महंगी हो जाती थी। अब खाद्य अपशिष्ट के पाउडर से सस्ते में कांक्रीट की मजबूती 205 फीसद तक बढ़ाई जा सकेगी।
ये होगा फायदा
-मिश्रण से कॉन्क्रीट की मजबूती 205% तक बढ़ने का दावा।
-इससे घरों की दरारें भी खुद-ब-खुद भर जाएंगी।
-खाद्य अपशिष्टप्रबंधन से 20% तक कार्बन उत्सर्जन कम होगा।
-ज्यादा टिकाऊ होने के साथ सीमेंट की खपत कम होगी। यह भी पढ़ें- शिवरात्रि पूजा के दौरान दर्दनाक हादसा, दीए से भड़की आग में 11 लोग झुलसे, एक गंभीर बड़े स्तर पर उत्पादन की तैयारी
आईआईटी दल ने सफल प्रयोग के बाद बड़े स्तर पर उत्पादन की तैयारी शुरू की है। दावा है कि ईंट, ब्लॉक और प्रीकास्ट बनाने वाली फैक्ट्रियां इससे कम लागत में मजबूत निर्माण सामग्री बना सकेंगी। इससे कार्बन उत्सर्जन में 20 फीसदी तक कमी आएगी।