Ashadha Amavasya : हिंदू धर्म में आषाढ़ की अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। इस दिन कई भक्त उपवास रखते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि आषाढ़ अमावस्या तिथि पर यदि पवित्र नदी में स्नान किया जाता है तो सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आषाढ़ माह की अमावस्या शुक्रवार को पड़ेगी। इस बार आषाढ़ अमावस्या पर सर्वार्थसिद्धि योग सहित कई दुर्लभ योग एक साथ बनने जा रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अमावस्या पर बन रहा यह संयोग शुभकारी होगा। इस संयोग में भगवान विष्णु का पूजन करने से अक्षय फल मिलेंगे। पितृदोष के निवारण के लिए भी उपाय किए जाएंगे। स्नान-दान व पितृकर्म के लिए नर्मदा तट पर श्रद्धालुओं का तांता लगेगा।
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला के अनुसार आषाढ अमावस्या तिथि 24 जून की शाम 7.02 बजे से आरभ हो चुकी है। वहीं इसकी समाप्ति 25 जून शाम 4.04 बजे होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार आषाढ़ अमावस्या 25 जून को मनाई जाएगी। इसी दिन तर्पण, धार्मिक क्रियाकलापों को करना शुभ माना जाएगा।
Ashadha Amavasya : इन शुभयोगों का संयोग
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 25 जून को आषाढ़ अमावस्या के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह में 5.25 बजे से बनेगा, जो सुबह 10.40 बजे तक रहेगा। आषाढ़ अमावस्या पर यह शुभ योग सवा 5 घंटे तक के लिए बनेगा। इसके अलावा उस दिन गंड योग सुबह 6 बजे तक है। उसके बाद से वृद्धि योग बनेगा। वृद्धि योग भी एक शुभ योग है। इसमें शुभ कार्य के फल में वृद्धि होती है। वृद्धि योग 26 जून को तड़के 2.39 बजे तक है। आषाढ़ अमावस्या पर मृगशिरा नक्षत्र सुबह 10.40 बजे है, उसके बाद आर्द्रा नक्षत्र है। इन सभी योगों के प्रभाव से आषाढ़ अमावस्या अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जा रही है।
Ashadha Amavasya : यह करेंगे व्रतधारी
आषाढ़ अमावस्या के दिन श्रद्धालु व्रतधारी ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर स्नान करेंगे। भगवान विष्णु को प्रणाम कर व्रत का संकल्प लेंगे। सुबह सूर्य देव को जल का अर्घ्य और तिलांजलि देंगे। सुबह पवित्र नदी में स्नान के दौरान हथेली में तिल रखकर बहती जलधारा में प्रवाहित करेंगे। पंचोपचार के बाद विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाएगी। विष्णु चालीसा का पाठ और विष्णु स्तोत्र का जाप होगा।
Ashadha Amavasya : पितरों को देंगे जलांजलि
आषाढ़ अमावस्या पर पितरों की भी पूजा की जाएगी। पितरों को जलांजलि देकर प्रसन्न करने के उपाय किए जाएंगे। पितृदोष निवारण के लिए पूजन व दान होगा। नर्मदा किनारे पितृकर्म करने के लिए लोग उमड़ेंगे। मान्यता है कि मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को जलांजलि देने से पितृकर्म में हुई भूलचूक के दुष्प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।
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