Mahatma Gandhi : स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 4 बार संस्कारधानी में प्रवास किया था। लेकिन उनकी जबलपुर की सबसे यादगार यात्रा दिसबर 1933 में हुई। 2 दिसबर 1933 को हरिजन यात्रा के संदर्भ में महात्मा गांधी एक सप्ताह के लिए जबलपुर आए। वे ब्यौहार रामनारायण सिंहा के निवास में ठहरे। सिंहा के पौत्र ब्यौहार डॉ अनुपम सिंहा ने बताया कि यूं तो गांधी जी उनके घर 3 बार आए, लेकिन यही एकमात्र दौरा था जब वे इतने अरसे तक ठहरे। डॉ सिंहा बताते हैं कि गांधीजी 1932 में साबरमती आश्रम त्याग चुके थे, इसलिए गांधी जी ने उनके पिता से आश्रम बनाने की चर्चा की। ब्यौहार रामनारायण सिंह ने इसके लिए जबलपुर के समीप ही बुढ़ागर स्थित अपनी सपत्ति गांधी के आश्रम के लिए दे दी और गांव का नाम भी बदलकर गांधीग्राम कर दिया। डॉ सिंहा बताते हैं कि कुछ कारणवश बाद में यहां गांधी जी का आश्रम नहीं बन सका।
महात्मा गांधी का पहली बार नगरागमन 20 मार्च 1921 को असहयोग आंदोलन के विस्तार के लिए हुए।दूसरी बार गांधी जी दिसबर 1933 में यहां आए। वे सात दिन तक जबलपुर में रुके। इसके बाद शहर की हीरजी गोविंदजी फर्म में 27 फरवरी 1941 को गांधी जी आकर ठहरे थे। चौथी व अंतिम बार मदन महल स्थित पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के निवास पर गांधी जी 27 अप्रेल 1942 में आए थे ।
Mahatma Gandhi : भोजन की जगह मांगा बकरी का दूध
27 फरवरी 1941 को महात्मा गांधी जबलपुर आए तो उन्होंने भोजन नही किया, बल्कि बकरी का दूध मांगा। तब बलदेवबाग स्थित हीरजी गोविंदजी फर्म का वाहिद नामक कर्मचारी अपनी बकरी लेकर आया। उंसने गांधी जी के सामने ही बकरी दुहकर उन्हें दूध पिलाया। हीरजी गोविंदजी फर्म के तत्कालीन मैनेजर रहे स्व. दुलीचंद भाई पालन के सुपुत्र व जानकीरमण कॉलेज के पूर्व प्राचार्य शरद भाई पालन ने पत्रिका को बताया कि वे उस वक्त 8-9 वर्ष के थे। उनके बाल मन की स्मृति में संचित यह दृश्य आज भी उन्हें याद है। गांधी जी उस समय संचालक सेठ लक्ष्मीदास भाई के बलदेवबाग स्थित बंगले रत्नहीर में करीब 4-5 घण्टे ठहरे थे। शरद भाई ने बताया कि गाँधीजी ने विदा होते वक्त सेठ लक्ष्मीदास भाई से हरिजन फंड में चन्दा मांगा। उस समय सेठ जी ने महात्मा गांधी को 500 रु की राशि प्रदान की थी।
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