Women safety campaign: कानून में व्यवस्था की लाचारी हावी है: महिलाएं
आधुनिकीकरण के चलते महिलाओं की सोच और चिंतन में व्यापक बदलाव आया। यही वजह है कि महिलाएं अब पहले से अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो रही हैं। इसके बावजूद आज भी अधिकांश महिलाएं घर की चार दीवारी से लेकर गली-मोहल्लों और सड़कों में हिंसा और प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं। कानून में व्यवस्था की लाचारी हावी है। उनके खिलाफ हुए आत्याचार के मामलों में देरी और न्याय नहीं मिलने से महिलाओं को आज भी यातना और प्रताड़ना के बीच जीवन जीना पड़ रहा है। महिला कई तरह के अपराधों का सामना कर रही हैं।
योग्य की हो भर्ती
डॉ सुषमा झा, महिला सलाहकार व समाजसेवी: महिला सुरक्षा की बात करने वाले सरकार को महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार को रोकने कानूनी संस्थानों में योग्य और अनुभवी लोगों की भर्ती की जानी चाहिए। ताकि वह महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार में बिना किसी दबाव के अपनी जिमेदारी निभा सके और दोषी को सजा दे सके।
समाज में समानता का भाव हो
तृप्ति परेडा, महिला समाजसेवी: महिलाओं के उपर हो रहे अत्याचार को रोकने समाज के भीतर दशकों से महिलाओं के प्रति सोच और असमानता का भाव खत्म करना होगा। समाज में महिलाओं को अपनी बात बेझिझक रखने, अपने साथ हुए अत्याचार बिना किसी भय और बदनामी के कहने की स्वतंत्रता हो तभी महिलाओं के दशा में सुधार संभव है।
छोटे बच्चों को अकेला न छोड़ें
पी साधना राव, समाजसेवी: वर्तमान समय में बच्चों को अकेला न छोड़े। अपने आसपास होने वाले घटनाओं के बारे में खुलकर बात करें। बेड टच और गुड टच की जानकारी दें। सिर्फ बेटियां ही नहीं अपने बेटों को भी अच्छे संस्कार देकर लड़का और लड़की के बीच अंतर को पाटने की कोशिश करें ताकि वह एक दूसरे को अलग न समझें। सोशल मीडिया में शोषित होने से बचें
करमजीत कौर, समाजसेवी: सोशल मीडिया भी महिला संबंधी अपराध को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाती है। यहां महिलाएं दूषित मानसिकता के लोगों की बातों में आकर कई तरह के शोषण का शिकार हो रही है। महिलाएं इस तरह के लोगों के झांसे में न आकर अपने खिलाफ होने वाले अपराधों को परिजनों के पास खुलकर शेयर करें।
संस्कार की जरूरत
आभा सांबेकर, समाजसेवी: आधुनिक दौर में स्वतंत्र रूप से जीने की लालसा में युवक युवतियां अपने संस्कार के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। उन्हें घर से मिलने वाले संस्कार की जगह बाहरी चमक धमक ने ले लिया है। ऐसे में उन्हें संयुक्त रूप से घर की बड़े बड़ों के प्रति समान और रिश्ते की पहचान कराने की जरूरत है। महिलाओं को न्याय मिलने में देरी ना हो
गायत्री आचार्य, महिला
काउंसलर व उद्घोषक: वर्तमान दौर में महिलाओं की दशा बदलने कई अधिकार दिए हैं। कानून में भी महिलाओं के लिए कई बदलाव किए हैं किन्तु इसकी जानकारी का आभाव है। यही वजह है कि वह अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने में पीछे रहते हैं। महिलाओं को उनके अधिकार की उचित जानकारी देने जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।
स्कूलों में हो आत्मरक्षा की क्लास
Women safety campaign: मीरा हिरवानी, व्यायाता एमएलबी क्रमांक दो: वर्तमान दौर में बाहरी और भीतर खतरों से बचने लड़कियों को शुरू से ही आत्मरक्षा के लिए अलग से क्लास लगाने की जरूरत है। लड़कियों को मानसिक और शारीरिक संबल प्रदान करने विशेष प्रावधान बनाए जाएं ताकि वह किसी भी खतरे से निपटने स्वयं सक्षम हो। कक्षा से 9वीं से यौंन शिक्षा दिए जाने की योजना पर काम हो।
मानसिकता में बदलाव आना चाहिए
नेहा पाठक, असि प्रोफेसर क्राइस्ट कॉलेज: ससुराल में होने वाले अत्याचार के कई मामलों में महिलाओं को दोष देने की बजाए लड़कों को भी समान दोषी माना जाना चाहिए। आजकल सिर्फ बेटियों को बूरे नजर से देखा जाता है जबकि बेटे भी दोषी होते हैं। घर में मांए अपने बेटे का पक्ष लेती है जो गलत है। बेटे को भी लड़कियों को समान देने सिखाया जाना चाहिए।