जीआरपी के वृत्ताधिकारी नरेन्द्र सिंह ने बताया कि नसबंदी के कारण वह मां नहीं बन पा रही थी, जिसके बाद दोनों ने डॉक्टर से नसबंदी खुलवाने की कोशिश की, लेकिन बच्चा नहीं हुआ। इसके बाद दोनों ने जयपुर जंक्शन पर मिलकर बच्चे का अपहरण करने की साजिश रची।
पहले दोनों दो बार अपहरण करने आए थे, लेकिन सफल नहीं हो पाए थे। फिर 14 मार्च को दोनों ने तीसरी बार अपहरण की योजना बनाई और जयपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। दोनों करीब सात-आठ घंटे तक बच्चे को चिह्नित करने में जुटे रहे। जब शिवम की मां मोबाइल चार्ज करने के लिए गई, तब जीविका ने बच्चे को टॉफी देकर अपने साथ ले लिया।
ऑटो में बैठे, फिर उतरकर गलियों से निकले
सिंह ने बताया कि 14 मार्च की रात को बच्चे का अपहरण करने के बाद महिला अपने प्रेमी संग जयपुर जंक्शन के बाहर पहुंची, वहां एक ऑटो में बैठ गई, लेकिन फिर ऑटो से उतरकर दोनों पैदल गलियों में होते हुए बच्चे को ले गए। आगे एक ऑटो करके नारायण सिंह तिराहा पहुंचे और वहां से उत्तर प्रदेश रोडवेज बस में बैठ गए।
सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से उनका पीछा किया। बस्सी टोल पर रोडवेज बस के नंबर प्राप्त किए। परिचालक से पूछताछ की गई, तब उसने बताया कि महिला और पुरुष एक बच्चे को लेकर बस में बैठे थे और उन्होंने लखनऊ से ऑनलाइन टिकट बुक करवाई थी। वे महुआ में उतर गए थे। तकनीकी आधार पर दोनों आरोपियों को बच्चे के साथ महुआ से करीब 30 किलोमीटर दूर एक गांव समौची से पकड़ा। आरोपी सुंदर अपनी बहन के घर बच्चे को ले जा रहा था।
साइकिल से पहुंचा रेलवे स्टेशन
बिहार के लक्ष्मीपुर निवासी सुदामा पांडेय ने बताया कि विश्वकर्मा में रहकर मजदूरी करता है। दो बेटियों की मां से उसने शादी की और उनके एक बेटा शिवम हुआ। पत्नी दोनों बेटी व शिवम को 14 मार्च की रात बिहार के सिवान जाने के लिए जयपुर जंक्शन आई थी। यहां बेटे शिवम का अपहरण होने के बाद पत्नी ने जानकारी दी। होली पर यात्री साधन कुछ नहीं मिला, तब विश्वकर्मा से साइकिल पर रेलवे स्टेशन पहुंचा। पत्नी के साथ दस पुलिसकर्मी बेटे की तलाश में जुटे थे।