कोर्ट ने इस मामले में मुख्य सचिव (चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग), निदेशक (चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवा निदेशालय) और कुलपति (राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय) से जवाब तलब किया है।
अधिवक्ता हरेंद्र नील ने क्या बताया?
मामले से जुड़े अधिवक्ता हरेंद्र नील ने बताया कि राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (RUHS) ने 9 सितंबर 2024 को चिकित्सा अधिकारी के 1220 पदों के लिए भर्ती विज्ञापन जारी किया था। इसके साथ ही एक सूचना पुस्तिका भी प्रकाशित की गई, जिसमें नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता, अनुभव, आरक्षण, वेतन स्तर, परीक्षा अनुसूची और अन्य नियम-शर्तें शामिल थीं। बाद में संशोधित विज्ञापन के जरिए पदों की संख्या बढ़ाकर 1700 कर दी गई। इस भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन 27 अप्रैल 2025 को किया गया। याचिकाकर्ता ने ओबीसी वर्ग के तहत इस परीक्षा में भाग लिया और सामान्य वर्ग की कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए। इसके बावजूद उनका नाम दस्तावेज सत्यापन और पात्रता जांच की सूची में शामिल नहीं किया गया।
कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दिया ये तर्क
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रत्येक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी, जो सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों से अधिक अंक प्राप्त करते हैं, उन्हें चयन प्रक्रिया के अगले चरण में शामिल करना अनिवार्य है। उनका बहिष्कार भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि मेधावी अभ्यर्थियों, जिन्होंने आरक्षण की छूट का लाभ नहीं लिया, उन्हें खुली श्रेणी में माना जाना चाहिए। इसके बाद ही आरक्षित श्रेणी की सूची तैयार की जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को सुनने के बाद RUHS को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को दस्तावेज सत्यापन और पात्रता जांच प्रक्रिया में शामिल करें। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है।