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जयपुर

राजस्थान के बीजेपी MLA की सदस्यता पर मंडराया खतरा, हाईकोर्ट ने सजा को रखा बरकरार; तुंरत करना होगा सरेंडर

Rajasthan Politics: राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने मामले में उनकी तीन साल की सजा को बरकरार रखा है।

जयपुरMay 02, 2025 / 07:28 pm

Nirmal Pareek

BJP MLA Kanwarlal Meena

फाइल फोटो

Rajasthan Politics: राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। राजस्थान हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने आपराधिक मामले में उनकी तीन साल की सजा को बरकरार रखते हुए निगरानी याचिका खारिज कर दी है। वर्ष 2020 में झालावाड़ की निचली अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी। इसके साथ ही अदालत ने उन्हें तुरंत निचली अदालत में सरेंडर करने को कहा है।

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इस फैसले के बाद अब मीणा की विधायक सदस्यता पर तलवार लटक रही है और उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। बता दें, यह मामला 2005 का है जब मीणा पर उपखंड अधिकारी को रिवॉल्वर दिखाकर धमकाने और पुनर्मतदान की मांग करने का आरोप लगा था। हाईकोर्ट के इस निर्णय ने राजस्थान की सियासत में हलचल बढ़ गई है।

क्या था पूरा मामला?

मनोहरथाना के थाने में दर्ज प्रकरण के अनुसार बीस साल पहले फरवरी 2005 में खताखेड़ी उप सरपंच का चुनाव कराने को लेकर लोगों ने जाम लगा रखा था। मौके पर उपखंड अधिकारी रामनिवास मेहता और आइएएस प्रोबेशनर प्रीतम बी यशवन्त मौके पर पंहुचे। तभी वहां कंवरलाल मीणा और अन्य लोग आए। कंवरलाल ने रिवाल्वर निकालकर उपखण्ड अधिकारी के कनपटी पर तान दी और जान से मारने की धमकी देते हुए पुनर्मतदान कराने को कहा।
इस मामले में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मनोहरथाना ने 2 अप्रेल 2018 को कंवरलाल मीणा और अन्य लोगों को बरी कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ निगरानी याचिका पर सुनवाई के बाद अपर सत्र न्यायाधीश अकलेरा ने अधीनस्थ अदालत के निर्णय को 14 दिसम्बर 2020 को अपास्त कर दिया।

याचिका खारिज कर सजा बरकरार

सत्र न्यायालय ने कंवरलाल मीणा को दोषी मानते हुए 3 पीडीपीपी एक्ट के तहत 3 साल के कठोर कारावास और दस हजार रुपए जुर्माना, धारा 506 के तहत 3 वर्ष के कठोर कारावास और दस हजार रुपए जुर्माना तथा धारा 353 के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास व पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा से दंडित किया। उच्च न्यायालय ने इस निर्णय के खिलाफ कंवरलाल मीणा की निगरानी याचिका खारिज कर सजा बरकरार रखा।

क्या कहते हैं नियम ?

सुप्रीम कोर्ट के लीली थॉमस बनाम भारत सरकार (2013) फैसले के अनुसार, यदि कोई सांसद, विधायक या विधान परिषद सदस्य किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाती है।
कानूनी तौर पर तीन साल की सजा मिलने के बाद कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता पर संकट मंडरा रहा है। यह खतरा तब तक बना रहेगा, जब तक कि कोई उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट उनकी सजा पर रोक नहीं लगाता या उसे रद्द नहीं करता।

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