विपक्ष का कहना है कि राज्य सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर पुनर्गठन की प्रक्रिया चलाई है। जनसंख्या, भौगोलिक दूरी और जनता की सहूलियत जैसे महत्वपूर्ण मापदंडों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। कहीं पर नगरीय निकायों में 10 किलोमीटर दूर गांवों को जबरन जोड़ा जा रहा है, तो कहीं पंचायतों का मुख्यालय ही 5 से 10 किलोमीटर दूर चला गया है।
सबसे गंभीर बात यह है कि जिलों के कलेक्टर भी अब साफ कह रहे हैं कि वे कुछ नहीं कर सकते क्योंकि सभी फैसले राज्य सरकार के स्तर पर लिए जा रहे हैं। ऐसे में आम जनता की आपत्तियां दर्ज होकर भी अनसुनी रह जाती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा और संघ की यह रणनीति आगामी चुनावों में वोटबैंक साधने की कोशिश है। पहले उपचुनावों को टालना, फिर वन स्टेट.वन इलेक्शन के नाम पर चुनावों में देरी करना और अब पुनर्गठन के जरिए क्षेत्रीय समीकरण बदलना इसी योजना का हिस्सा माना जा रहा है।
विपक्ष ने सरकार को चेताया है कि यदि जल्दबाजी और पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं रोका गया, तो इसका व्यापक विरोध होगा। जनता में पहले ही आक्रोश पनप रहा है, जो आगे चलकर एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।