राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल पांच वर्षों के लिए सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट से यह प्लान बनवा रहा है। इसके लिए एमओयू हो चुका है। यह प्लान अगले साल मार्च तक तैयार होगा, जिसमें वर्ष 2026 से 2030 तक जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विभागों की जिम्मेदारियां तय की जाएंगी।
मंडल अधिकारियों के अनुसार, यह योजना मुख्यत: चिकित्सा व स्वास्थ्य, कृषि, जल संसाधन, वन, नगर निकाय आदि विभागों के लिए बनाई जाएगी। इसके बाद कृषि और खाद्य सुरक्षा, मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र एवं भूमि प्रबंधन, ऊर्जा व जल उपयोग, स्वास्थ्य, पशुपालन और नागरिक सुविधाओं के संबंध में कार्रवाई प्रस्तावित है। उद्देश्य यह है कि लोग बिना किसी कठिनाई के जीवन यापन कर सकें।
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इसलिए जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट गहरा रहा है, वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो रहा है। अनियमित बारिश से फसलें नष्ट हो रही हैं। मिट्टी की गुणवत्ता घट रही है, उपजाऊ भूमि बंजर हो रही है, जिससे किसान खेती छोड़ रहे हैं। प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी, जल और वायु प्रदूषित हो रहे हैं।
-ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट अपनाएं, छत-बालकनी में पौधे लगाएं।
-हर वर्ष अधिक पौधे लगाएं।
-निजी गाड़ियों की बजाय साइकिल या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें।
-बिजली-पानी की बचत करें।
-सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग न करें।
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हम भी समझें जिम्मेदारी
ग्रीन हाउस गैसों के कारण तापमान बढ़ रहा है। सर्दी के दिन कम और गर्मी के दिन अधिक हो रहे हैं। इससे ऊर्जा की खपत बढ़ी है, जो प्रदूषण का कारण बन रही है। औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से उत्सर्जन और निर्माण कार्यों के कारण वातावरण गर्म हो रहा है। इससे बचने के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुकूल उपाय अपनाना आवश्यक है।
-डॉ. विजय सिंघल, पूर्व मुख्य अभियंता, प्रदूषण नियंत्रण मंडल
जलवायु परिवर्तन से सीओपीडी व अस्थमा के मरीजों पर अधिक असर पड़ रहा है। जो भी प्लान बने, वह स्वस्थ और बीमार व्यक्तियों की जरूरतों के अनुसार होना चाहिए। अब तक हुए अध्ययनों को आधार बनाकर योजना बनाई जानी चाहिए, केवल अनुमान के आधार पर नहीं।
-डॉ. वीरेन्द्र सिंह, श्वास रोग विशेषज्ञ