प्यास ने तोड़ी शादी की उम्मीदें 70 घरों और 300 लोगों के इस गांव में एकमात्र हैंडपंप ग्रामीणों और सैकड़ों मवेशियों की प्यास बुझाने का इकलौता सहारा है। गर्मियों में कुएं और जलाशय सूख जाते हैं, और अधिकांश हैंडपंप खराब पड़े हैं। महिलाएं दो किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाती हैं, इसीलिए रिश्तेदार अपनी बेटियों की शादी यहां करने से कतराते हैं। युवा रमेश ने आंसुओं के साथ कहा, ‘कई बार पलायन का मन करता है, लेकिन मां-बाप को कौन पानी पिलाएगा?’ पानी की यह किल्लत न केवल शारीरिक, बल्कि भावनात्मक बोझ बन चुकी है, जो युवाओं के भविष्य को अंधेरे में धकेल रही है।
ड्रम में बंद पानी, ताले में कैद उम्मीदें गर्मियों में हालात इतने भयावह हो जाते हैं कि ग्रामीण पानी को ड्रम में बंद कर ताला लगाते हैं, ताकि हर बूंद कीमती बन जाए। पीने से लेकर नहाने और मवेशियों तक, सबके लिए यही पानी इस्तेमाल होता है। ग्रामीणों ने बताया कि हर घर नल योजना कागजों तक सिमट गई है। पीएचईडी विभाग को बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई समाधान नहीं मिला। एक बुजुर्ग महिला ने रोते हुए कहा, ‘हमारी जिंदगी पानी के इर्द-गिर्द सिमट गई है।’
सरकार से गुहार, कब आएगा समाधान? कुंडल गांव के लोग सरकार से स्थायी समाधान की आस लगाए बैठे हैं। पानी की कमी ने न केवल उनकी रोजमर्रा की जिंदगी, बल्कि सामाजिक रिश्तों को भी तोड़ दिया है। यह समय है कि सरकार इस गांव की प्यास और युवाओं की अधूरी उम्मीदों को गंभीरता से ले, ताकि कुंडल में फिर से खुशियों की बयार बहे।