scriptमानवता की मिसाल: विदेशी महिला बनी श्वानों का सहारा | Patrika News
जैसलमेर

मानवता की मिसाल: विदेशी महिला बनी श्वानों का सहारा

वह निवासी तो जर्मन देश की है, लेकिन उसका दिल भारत में बसता है। मरुभूमि के पारंपरिक संगीत और कला से प्रेरित होकर जैसलमेर आईं जर्मनी की 35 वर्षीय महिला नाडिया रिचर्ड अब गली-गली में घायल और बीमार श्वानों की सेवा करती नजर आती हैं।

जैसलमेरDec 18, 2024 / 08:14 pm

Deepak Vyas

jsm news

ds

वह निवासी तो जर्मन देश की है, लेकिन उसका दिल भारत में बसता है। मरुभूमि के पारंपरिक संगीत और कला से प्रेरित होकर जैसलमेर आईं जर्मनी की 35 वर्षीय महिला नाडिया रिचर्ड अब गली-गली में घायल और बीमार श्वानों की सेवा करती नजर आती हैं। दवाइयों से लेकर मेडिकल उपकरण और पोषण सामग्री तक, नाडिया इन निरीह प्राणियों की हर जरूरत का ध्यान रखती हैं। उनकी इस पहल में करणी गो रक्षक दल के सदस्य भी जुड़ चुके हैं। नाडिया बताती है कि वह गत 10 वर्षों यहां लोक कलाकारों के पास लोक संगीत व वाद्य यंत्रों के आकर्षण में आ रही है। वह जैसलमेर की गलियों में घूमती है और कोई भी बीमार या घायल श्वान देखने पर उसकी सेवा में जुट जाती है। चाहे बीमार श्वानों के लिए कंबल की व्यवस्था हो या मच्छरदानी, दवा, पट्टी, मरहम हो या अन्य कोई मेडिकल संबंधी सामान..। खुद इनकी व्यवस्था करती है। बीमार व घायल श्वानों के स्वस्थ होने पर उसी गली या मोहल्ले में छोड़ देती है, जहां से वह उन्हें उठाकर लाती थी। नाडिया बताती है कि जैसलमेर की कला और संस्कृति ने उसे यहां खींचा, लेकिन यहां के श्वानों की दुर्दशा देखकर मैं उनकी मदद किए बिना नहीं रह सकती। अब यह उनके जीवन से जुड़ा एक कार्य हो चुका है। उसका मन इसी में लगता है। विदेशी महिला को मानवता और करुणा का पाठ पढ़ाते देख, स्थानीय पशु प्रेमी भी उनसे जुडऩे लगे हैं।

सीमाएं केवल भूगोल में, मानवता के लिए नहीं

करणी गो रक्षक दल के संयोजक हाकमदान झीबा बताते हैं कि जैसलमेर की गलियों में नाडिया के साथ जुड़ते लोग केवल श्वानों की सेवा में ही नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक संदेश को भी आगे बढ़ा रहे हैं। उनका प्रयास बताता है कि सीमाएं केवल भूगोल में होती हैं, मानवता के लिए नहीं। पशु प्रेमी महेन्द्र पंसारी व मालती पंसारी बताते हैं कि जैसलमेर की धरोहर, जहां दुर्ग, हवेलियां और रेत के टीले हैं, वहीं अब नाडिया का नाम भी सेवाभाव की इस धरती पर स्वर्णाक्षरों में जुड़ रहा है। जब नाडिया किसी श्वान को बीमार या घायल देखती है तो उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें छा जाती है और जब वह उन्हें स्वस्थ देखती है तो चेहरा खुशी से चमक उठता है। नाडिया को मरु संगीत की जानकारी देने वाले अकरम खां का कहना है कि जर्मनी में भले ही नाडिया पली-बढ़ी व पढ़ी हो, लेकिन उसका मन जैसलमेर की कला-संगीत और श्वानों की सेवा व सार-संभाल में ही लगता है। इसी लिए वह एक दशक से यहां आ रही है।

Hindi News / Jaisalmer / मानवता की मिसाल: विदेशी महिला बनी श्वानों का सहारा

ट्रेंडिंग वीडियो