दर्शनीय स्थलों पर छाई वीरानी
जैसलमेर के ऐतिहासिक सोनार दुर्ग, कलात्मक पटवा हवेलियों से लेकर सैकड़ों साल प्राचीन गड़ीसर सरोवर आदि पर पूरी तरह से वीरानी नजर आती है। दुर्ग की घाटियों पर दोपहर 12 बजे से पहले लक्ष्मीनाथजी के दर्शन करने स्थानीय बाशिंदे अवश्य आवाजाही करते दिखते हैं। उसके बाद तो वहां मानो कफ्र्यू लगा रहता है। यही स्थितियां पटवा हवेली क्षेत्र की है। इन सब जगहों पर विगत मई व जून महीनों में भी ज्यादा नहीं तो प्रतिदिन 50 से 100 सैलानी तो औसतन भ्रमण के लिए पहुंचते ही रहे हैं। कभी-कभार विदेशियों के बड़े समूह भी गर्मी के मौसम में देखे जाते रहे हैं। इस बार हालात पूरी तरह से बदल गए हैं।शुक्र है, सीजन में नहीं हुआ तनाव
पर्यटन से जुड़े विजयदान ने कहा कि ग्रीष्मकाल में भी थोड़ा बहुत काम मिलता रहा है, लेकिन इस बार पाकिस्तान के साथ तनाव के चरम पर पहुंचने की वजह से पर्यटक बिलकुल भी नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह तो फिर भी अप्रेल व मई में हुआ, कहीं अक्टूबर से जनवरी के दौरान होता तो स्थितियां बहुत विकट हो जाती। सम के रिसोर्ट व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया कि सेंड ड्यून्स पूरी तरह से बियाबान हो गए हैं। वहां घूमने कोई नहीं जा रहा। रिसोट्र्स पर ताले जड़े हैं, लोक कलाकार व हजारों लोग पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं।अब आगे क्या
चालू मई माह में पर्यटन व्यवसाय पर सैन्य घटनाओं की वजह से गिरी गाज के बावजूद पर्यटन से जुड़े लोग सीमावर्ती बाशिंदे होने के जज्बे से उत्साह में हैं। उनका कहना है कि देश के नाम पर आर्थिक नुकसान भी मंजूर है। हालांकि उनकी उम्मीदें आने वाले दिनों और विशेषकर ऑफ सीजन के अंतिम जून माह पर टिकी है। उन्हें लगता है कि अब सब कुछ ठीक चला तो थोड़ी बहुत संख्या देशी व विदेशी पर्यटक स्वर्णनगरी भ्रमण पर अवश्य आएंगे।एक्सपर्ट व्यू
सीमाओं पर तनाव का असर निश्चित रूप से जैसलमेर के मौजूदा पर्यटन पर पड़ा है और यह एकदम से शटडाउन जैसा हो गया है। अब िस्थतियां सधर रही हैं। आने वाले दिनों में समर वेकेशन में कम खर्च में भ्रमण का लुत्फ उठाने वाले सैलानियों की आवक हो सकती है। फिर भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि हम सीमांत क्षेत्र के लोग हैं, जिन्होंने देश को सबसे आगे रखा है।- कैलाश कुमार व्यास, पर्यटन विशेषज्ञ