साथ ही वाटर लेबल गिरने से जलसंकट गहराने लगा है। ऐसे में पृथ्वी के अस्तित्व को बचाने पौधरोपण के साथ ही तालाब और कुएं में पानी संरक्षित करने के लिए कारगर उपाय की आवश्यकता है। लेकिन जिम्मेदारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
World Earth Day 2025: प्रदूषण का बढ़ रहा बोझ
पेड़ों की कटाई और कांक्रीटीकरण के साथ ही पानी के लगातार हो रहे दोहन से वाटर लेबल दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। बदलते समय के साथ शहर में डामरीकरण की जगह सीमेंटीकरण रोड की संख्या बढ़ रही है। शहर के मुख्य मार्ग पर डिवाइडर निर्माण में आवागमन में सहूलियत मिली है। वर्षो पुराने पेड़ काटकर सीसी के रोड बिछाए गए है। लेकिन हरियाली को लेकर कहीं कोई प्रयास नहीं किए गए।
नई सड़कों पर सीमेंट कांक्रीट के जाल
वहीं हाइवे से लेकर शहर के चांपा रोड, नहरिया बाबा रोड, केरा रोड की यही स्थिति है। चांपा रोड निर्माणाधीन है। इस मार्ग के निर्माण के लिए भी बड़ी संख्या में वर्षो पुराने पेडों को धड़ल्ले से काटकर राह से हटाया गया। लेकिन नए लगाने पर किसी का ध्यान नहीं है। जिम्मेदारी पौधरोपण के नाम खानापूर्ति करते हैं। अप्रैल माह में वातावरण सूर्ख तपन बिखेरने लगा है। इससे सीसी रोड से आवाजाही के दौरान लोगों को भीषण गर्मी तपन का अहसास हो रहा है। अप्रैल माह में पहली बार रिकार्ड 45 डिग्री जिले का तापमान पहुंच गया है। शहर भट्टी की तरह तप रहा है। इसके अलावा आज जिले का जल स्तर 80 फीट नीचे पहुंच गया है। जिससे लोगों के सामने पेयजल की समस्या शुरु हो गई है। इन हैंडंपंपों से लोगों को साल में सात-आठ महीने ही पेयजल की आपूर्ति होती है। अप्रैल आते ही वाटर लेवल डाउन हो जाता है। यह परेशानी इस साल भी शुरू हो चुकी है।
वाटर हार्वेस्टिंग व पौधरोपण से सुधरेगी व्यवस्था
शहर में लगभग 20 तालाब व दर्जनों कुएं है, जो पानी संचय करने का सशक्त माध्यम है। बारिश के पानी को इनमें भरा जा सकता है। ऐसा करने से वाटर लेबल में कमी नहीं आती लेकिन लोग हैडपंप व नल की पानी का ज्यादातर उपयोग करते हैं जिससे तालाब व कुएं की पूछ परख कम हो गई है। तालाब व
कुआं ऐसे जलश्रोत हैं, जिसमें पानी भरे रहने से पानी की समस्या खड़ी नहीं होती। आसपास का वाटर लेवल भी मेंटेन रहता है। इसके बावजूद इसे संरक्षित रखने शासन-प्रशासन द्वारा किसी तरह की पहल नहीं की जा रही है।
शहर का डबरी तालाब जहां कचरे से अटा है, वहीं भाठापारा के नवा तालाब का पानी भी सूखने की कगार पर है। इसी तरह भीमा तालाब, जूना व अन्य तालाबों में पानी नहीं होने से
तालाब का उपयोग नहीं हो पा रहा है और मिट्टी पटता जा रहा है। नगर समेत अब गांवों में भी कुएं कम ही दिखते हैं। जो कुछ पुराने कुएं बच गए हैं उनमें भी पानी नहीं रह गया है। लोग इनको कचरादान के रूप में उपयोग करने लगे हैं। ऐसे में जल स्त्रोत की कमी बना हुआ है।
हाइवे में वर्षों पुराने पेड़ काटे
शहरों में बनी डामर और
सीमेंट कांक्रीट की चौड़ी संडकें व पक्के मकानों की वजह से पानी भू गर्भ में नहीं जा पा रहा है। ऐसे में बरसात का पानी बेकार बह जाता है और वाटर लेबल मेंटेन नहीं हो पा रहा है। वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से पानी को सहेजा जा सकता है साथ ही गर्मी के दिनों में होने वाली पानी की समस्या से भी निजात मिल सकती है लेकिन मकान बनाने के बाद भी लोग वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर पानी बचाने मेें रुचि नहीं दिखाते। नगर में हर साल सैकड़ाें की संख्या में मकान बनाए जा रहे हैं पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम गिनती के बन रहे हैं।