प्रकृति का अभिन्न अंग नदियां सदैव ही जीवन दायिनी रही है। नदिया अपने साथ बरसात का जल एकत्रित कर उसे भूगर्भ में पहुंचाती है, विडंबना ही है कि हमारी आस्था की पवित्र और संस्कृति से जुड़ी नगर की जीवन दायिनी सदानीरा मोक्षदायिनीचंद्रभागा नदी का आंचल गंदे नाले और इसमें लगातार आस्था और श्रद्धा के नाम पर डाले जाने वाली गंदगी प्रदूषित कर रही है।
जन-जन की आस्था से जुड़ी पवित्र नदी चंद्रभागा में काफी समय से सीवर, व्यर्थ मलवा, औद्योगिक कचरा, पॉलिथीन आदि डाल रहे हैं। जिससे आज हाड़ौती की यह गंगा प्रदूषित हो गई है। एक तरफ इस नदी को माता कहकर पूजा जाता है दूसरी ओर इसमें सीवर, कचरा और तो और मृत पशुओं के शव तक डाल दिए जाते हैं। ऐसे में नदी को पूजने और पवित्र कहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
हम नदियों को प्रदूषित करने का कारक बनते हैं तो कर्मकांडों से हमें खुशी नहीं मिलने वाली, इस स्थिति के चलते मोक्षदायिनी और जीवन दायिनी कहे जाने वाली यह पवित्र नदी अपवित्र होती जा रही है। राज्य सरकार के सीवरेज के लिए पाइपलाइन डालने और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के बावजूद भी नदी के आसपास की दर्जनों कॉलोनियों का सीवरेज का पानी इस नदी में समाहित हो रहा है। नदी के किनारे माधोपुर बाईपास के आसपास लगे ईंट के भट्टो की सारी गंदगी तथा इसके पास ही पशुओं को काटकर उनका अपशिष्ट नदी के किनारे ही छोड़ा जा रहा है। नगर व आसपास के ग्रामीण क्षेत्र तथा जिले और पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश तक के लोग इस नदी में अस्थि विसर्जन के साथ ही राख का भी विसर्जन कर इसके जल को प्रदूषित कर रहे हैं।
बिन नदी जीवन मुश्किल
यह विडंबना है कि जिस नदी ने सैकड़ो वर्षों से हमें गले लगा रखा है, जो मोक्ष दायिनी है वहीं सदानीरा नदी अपना अस्तित्व खोने के कगार पर आ गई है। ऐसी स्थिति में इस पवित्र नदी को बचाने के लिए सरकार के साथ ही निजी प्रयासों की भूमिका की आवश्यकता है। सरकार और जिला प्रशासन दावे करते नहीं थकते कि वह मोक्ष दायिनी को प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन इसकी बदहाली जीती जागती मिसाल है। मोक्षदायिनीचंद्रभागा नदी के विकास को लेकर जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार को अवगत कराया जाएगा। नरेंद्र कुमार मीणा तहसीलदार झालरापाटन