Father’s Day: बेटे को ऊंटगाड़ी नहीं चलाने दूंगा… खेतों में पसीना बहाया-हल चलाया… बेटा बना अफसर
Father’s Day: जेठ माह की तपती धूप में कार्य करते समय एक सपना था कि चाहे कुछ भी हो जाए बेटे को ऊंटगाड़ी नहीं चलाने दूंगा। मैं खूब मेहनत करूंगा लेकिन बेटे को अफसर बनाकर ही रहूंगा।
झुंझुनूं। कमाई का कोई जरिया नहीं था। खेती भी ज्यादा नहीं थी, लेकिन मन में इच्छा थी कि जो पढ़ाई मैं नहीं कर सका वह मेरा बेटा करे। मेरी इच्छा रही है, मेरे बेटे को जीवन यापन के लिए मेरी तरह तपती दोपहरी में ऊंटगाड़ी नहीं चलाना पड़े।
जब बेटे को जिले के सबसे बड़े राजकीय भगवान दास खेतान अस्पताल में पीएमओ की कुर्सी पर बैठा देखा तो ऐसा लगा मानो मेरी मेहनत सफल हो गई। यह बताते हुए अलीपुर गांव निवासी सुलतान सिंह भाम्बू की बूढी आंखें छलक पड़ी।
तकलीफ में गुजरा दिन
उन्होंने राजस्थान पत्रिका को बताया, मेरा जन्म वर्ष 1954 में हुआ। तब उस समय उंटगाड़ी से दूसरे के खेतों में जुताई, परिवहन व फसल बिजाई का कार्य करता था। उससे जो रुपये मिलते थे उससे घर का खर्चा भी चलाता था और बेटे को भी पढ़ाता था।
बंटाई पर की खेती
जेठ माह की तपती धूप में कार्य करते समय एक सपना था कि चाहे कुछ भी हो जाए बेटे को ऊंटगाड़ी नहीं चलाने दूंगा। मैं खूब मेहनत करूंगा लेकिन बेटे को अफसर बनाकर ही रहूंगा। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। समय बदला और गांवों में ट्रैक्टर आ गए। उनके आने से ऊंटगाड़ी वालों को काम मिलना बंद हो गया। आय भी बंद हो गई। इसके बाद शुरुआत में बंटाई पर फसल बोना शुरू किया। फिर एक ट्यूबवैल लगाकर खेती आरंभ की।
तू पढ़, फीस मैं भरूंगा….
दो बार तो पकी हुई फसलों पर ओले गिर गए, लेकिन बेटे के सामने कभी तंगी महसूस नहीं होने दी। उसे यही कहता रहा, तू पढ, फीस मैं भरूंगा। प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा अलीपुर के सरकारी स्कूल में पूरी करवाई। 10 वीं के बाद की शिक्षा शहीद कर्नल जेपी झुंझुनूं में दिलवाई। इसके बाद डॉक्टर की पढाई करवाई।
आज ऐसा लगता है जितना हो सका मैंने पिता का फर्ज निभाया। अब इलाज के बाद कोई घर पर बेटे डॉ जितेन्द्र भाम्बू को धन्यवाद देने आता है तो ऐसा लगता है मानो कड़ी मेहनत का फल ईश्वर ने दे दिया है।