हाईकोर्ट ने पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब आरोप प्रभावशाली राजनेता और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से जुड़े हों, तो पुलिस एजेंसियों से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती। न्यायाधीश फरजंद अली ने आदेश में कहा कि सीबीआइ के पास ब्रेन मैपिंग, लाई डिटेक्टर जैसी आधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं, जिससे मामले की गहन जांच संभव हो सकेगी।
यह आदेश परिवादी परमेश्वर रामलाल जोशी की याचिका पर दिया गया, जिन्होंने आरोप लगाया कि उनकी रघुनाथपुरा स्थित खान से खनन कार्य में इस्तेमाल होने वाली मशीनें चोरी कर खुर्दबुर्द कर दी गईं। उन्होंने आरोप लगाया कि भीलवाड़ा पुलिस अधीक्षक से लेकर पुलिस महानिदेशक तक गुहार लगाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंतत: न्यायालय के आदेश पर एफआइआर तो दर्ज हुई, लेकिन प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव में पुलिस निष्क्रिय बनी रही।
निष्पक्ष तथा त्वरित जांच सुनिश्चित करें
कोर्ट ने सीबीआइ निदेशक को निर्देश दिया कि वे इस मामले में अनुसंधान के लिए वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त करें और निष्पक्ष तथा त्वरित जांच सुनिश्चित करें। साथ ही, भीलवाड़ा पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि वे मामले से जुड़े सभी दस्तावेज सीबीआई को सौंप दें।
हाईकोर्ट ने जताई हैरानी
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस बात पर हैरानी जताई कि एफआइआर दर्ज होने के 7 माह बाद भी पुलिस उप-अधीक्षक स्तर के अधिकारी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के भाई के मामले में आरोपी होने से अनभिज्ञ बने रहे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एसओजी, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और सीआइडी जैसी एजेंसियों से जांच करवाई जा सकती थी लेकिन वे सभी पुलिस महानिदेशक के अधीन होने के कारण निष्पक्षता पर संदेह था। क्या हैं मामले
पहला मामला : करेड़ा थाने में
जयपुर निवासी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ मनीष धाबाई, मथुरा निवासी श्यामसुंदर गोयल, गाजियाबाद निवासी चन्द्रकांत शुक्ला, जोधपुर निवासी राजकुमार विश्नोई और जयपुर निवासी जितेन्द्र धाबाई के खिलाफ दर्ज किया गया। इसमें आरोप लगाया कि इन सभी ने मिलकर 2018 से जनवरी 2021 के बीच षड्यंत्रपूर्वक जोशी की खान से एक्सकेवेटर मशीन, डम्पर, डीजल एयर कम्प्रेशर, लेथ मशीन और टेक मशीनें चोरी कर उन्हें उदयपुर और केरल में खुर्दबुर्द कर दिया।
दूसरा मामला : जोशी की ओर से पूर्व राजस्व मंत्री रामलाल जाट, सूरज जाट, पूरणलाल गुर्जर, महिपाल सिंह, महावीर प्रसाद चौधरी और सुरेश जाट के खिलाफ दर्ज करवाया था। इसमें आरोप था कि आरोपियों ने खान से मशीनरी और वाहन चुरा लिए और जब पुलिस में मामला दर्ज हुआ, तो जांच के दौरान एक आरोपी ने फर्जी किराए का समझौता पेश कर दिया। इस कथित फर्जी दस्तावेज के आधार पर दो पुलिस अधिकारियों ने केस में नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट पेश कर दी।
एक आरोपी का अंतरराष्ट्रीय मूर्ति तस्करी से संबंध : इस मामले के एक आरोपी की 2003 में अंतरराष्ट्रीय मूर्ति तस्करी मामले में भी संदिग्ध भूमिका रह चुकी थी। जयपुर पुलिस ने इस मामले का पर्दाफाश किया था, हालांकि बाद में न्यायालय ने पुलिस जांच में खामियों के चलते वामन नारायण घीया की सजा रद्द कर दी थी।