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कटनी में पदस्थ रहे आइएएस की बड़ी पहल: सेटेलाइट की मदद वाला ‘सिपरी सिस्टम’ प्रदेश को करेगा लबालब

प्रदेश में जल संरक्षण को नई दिशा दे रहा सिपरी सिस्टम: सेटेलाइट सर्वे से 7,656 सरोवर हो रहे तैयार, 10,357 को स्वीकृति

कटनीApr 27, 2025 / 08:59 pm

balmeek pandey

Ponds being built after satellite survey

Ponds being built after satellite survey

बालमीक पांडेय@कटनी. हर साल अमृत सरोवर, तालाब और खेत तालाब बन रहे थे, पानी न ठहरने पर अरबों रुपए बर्बाद होते रहे हैं, लेकिन मनरेगा परिषद ने खास पहल की है। इसरो और गूगल से डाटा कलेक्ट कर साफ्टवेयर सिपरी तैयार करते हुए हर जिले में ऐसे स्थान चयनित किए गए हैं जहां पर बारिश के पानी का प्राकृतिक बहाव है, ताकि पानी इनमें ठहरे। सरोवर लबालब हों और किसानों के खेतों के कंठ तर हों। इस खास पहल में आईएएस अवि प्रसाद व उनकी टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मध्यप्रदेश सरकार ने ग्रामीण जल संरक्षण और हरित स्थायित्व को मजबूत करने के लिए एक अभिनव पहल की है। अब जल स्रोतों के संरक्षण और पुनर्भरण की योजनाएं वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर बनाई जा रही हैं। इस दिशा में सिपरी (साफ्टवेयर फॉर आइडेंटिफिकेशन एंड प्लानिंग ऑफ रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर) सॉफ्टवेयर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
सिपरी एक अत्याधुनिक जीआइएस आधारित सॉफ्टवेयर है, जिसे मध्यप्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम और एमपीएसइजीसी के सहयोग से विकसित किया गया है। इस सॉफ्टवेयर का मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण के लिए उपयुक्त स्थलों की सटीक पहचान कर गुणवत्तापूर्ण संरचनाओं का निर्माण सुनिश्चित करना है। कटनी सहित प्रदेश के सभी जिलों को इसमें शामिल किया गया है।

कैसे काम करता है सिपरी

सिपरी भूगोल, जलविज्ञान, मृदा विज्ञान, ढाल और जल बहाव जैसी जानकारियों के आधार पर स्थान का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है। इसके जरिए खेत तालाब, अमृत सरोवर, चेक डैम जैसी संरचनाओं के निर्माण के लिए सर्वोत्तम स्थल चुने जा रहे हैं, जिससे संसाधनों का अधिकतम और टिकाऊ उपयोग संभव हो पा रहा है।

यह हैं योजना

जल गंगा समवर्धन अभियान के तहत सिपरी की मदद से 10,357 नए जल संरक्षण कार्य प्रारंभ किए गए। 26 अप्रेल तक सिपरी के जरिए 7,656 कार्य पूर्ण किए गए, जिनमें रिजर्व संरचनाओं का निर्माण भी शामिल है। जलदूत अभियान के तहत अब तक 1,94,166 जलदूतों का पंजीकरण हो चुका है, जो स्थानीय समुदाय को जोड़ते हुए जल संरक्षण कार्यों में सहयोग कर रहे हैं। इस योजना में 10 हजार खेत तालाब और 400 अमृत सरोवर के स्थान चिन्हित कर काम शुरू कराया गया है।
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एसईपीआराई ने बदला जल संरक्षण का तरीका

पहले जहां संरचनाओं का चयन अक्सर भौतिक निरीक्षण और अनुभव पर आधारित होता था, अब सिपरी वैज्ञानिक विश्लेषण से तय करता है कि किस स्थान पर किस तरह की संरचना बननी चाहिए। इससे न केवल निर्माण की गुणवत्ता बढ़ी है, बल्कि लंबे समय तक जल संरचनाओं के उपयोग को भी सुनिश्चित किया गया है।
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दीर्घकालिक होगा असर, जल संकट से स्थायी समाधान

सिपरी सॉफ्टवेयर से बने जल संरचनाएं भविष्य के जल संकट का स्थायी समाधान बन रही हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ेगी, सिंचाई की उपलब्धता सुधरेगी और किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी। सिपरी आज प्रदेश को ‘जल समृद्ध राज्य’ बनाने की दिशा में एक मजबूत उदाहरण स्थापित कर रहा है।

वैज्ञानिक तरीके से जल सुरक्षा

सिपरी ने जल संरक्षण के क्षेत्र में मध्यप्रदेश के प्रयासों को वैश्विक स्तर पर आदर्श बनाने की ओर एक सशक्त कदम बढ़ाया है। सरकार की यह पहल आने वाली पीढयि़ों के लिए जल स्रोतों की स्थिरता सुनिश्चित करने वाली ऐतिहासिक उपलब्धि कही जा सकती है।

आयुक्त ने कही यह बात


अवि प्रसाद, आयुक्त रोजगार गारंटी परिषद भोपाल ने कहा कि इसरो और गूगल से डाटा लेकर यह सिपरी साफ्टवेयर तैयार किया गया है। जलस्रोतों के प्राकृतिक बहाव वाले क्षेत्रों में ही खेत तालाब, अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं। इसके तहत साढ़े 7 हजार से अधिक योजनाओं पर काम चल रहा है। 10 हजार नई संरचनाओं को स्वीकृति मिली है। इनके निर्माण से जल संरक्षण को लेकर बढ़े परिणाम सामने आएंगे।

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