scriptHoli 2025: बैगा आज भी टेसू के फूल से ही रंग बनाकर खेलते हैं होली, जानें इसकी मान्यताएं.. | Holi 2025: Even today, Baiga play Holi colors Tesu flower | Patrika News
कवर्धा

Holi 2025: बैगा आज भी टेसू के फूल से ही रंग बनाकर खेलते हैं होली, जानें इसकी मान्यताएं..

Holi 2025: छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के वनांचल में क्षेत्रों में आज भी टेसू(पलाश) के फूलों के रंग से ही होली खेलने की परंपरा कायम है।

कवर्धाMar 13, 2025 / 02:29 pm

Shradha Jaiswal

Holi 2025: बैगा आज भी टेसू के फूल से ही रंग बनाकर खेलते हैं होली, जानें इसकी मान्यताएं..
Holi 2025: छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के वनांचल में क्षेत्रों में आज भी टेसू(पलाश) के फूलों के रंग से ही होली खेलने की परंपरा कायम है। पंडरिया के वनांचल में बैगा-आदिवासी ग्रामीण पलाश के फूल से बने प्राकृतिक रंग से होली खेलते हैं। पंडरिया और बोड़ला ब्लॉक के वनांचल क्षेत्रोें में बैगाओं की होली पारंपरिक होती है।
यह भी पढ़ें

Holi 2025: होली की छाने लगी रंगत! रंग-गुलाल, पिचकारियों और मुखौटों से सजने लगे बाजार

Holi 2025: टेसू के फूल से ही रंग बनाकर खेलते हैं होली

होली के बहाने बैगा अग्नि देव की पूजा करते हैं, क्योंकि ठंड के दिनों में यही आग इन्हें बचाती हैं। बैगाओं के पास होली की कोई कथा या मिथक नहीं है। होलिका दहन के दूसरे दिन गांव के लोग राख और मिट्टी से होली खेलते हैं। बाद में रंग-गुलाल भी होता है। रंग पलाश के फू लों से बनाया जाता है।
पलाश के केसरिया रंग में सतकथा की राख डाल देते हैं। गांव के युवक-युवती और स्त्री-पुरुष की टोली बनाकर फ ाग गाते व नाचते हैं। बांस का कुदवा बनाकर नाचते हुए घर-घर जाते हैं फागुन के गीत गाते हैं। घर के मालिक को टीका लगाते हैं इसके बदले घर मालिक अनाज, पैसा नेग के रूप में देता है।

प्राचीन काल से…

बृज की होली से कौन परिचित नहीं है। कृष्ण की नगरी बृज में पलाश के रंगों से होली खेली जाती थी। इतिहास पर नजर डालें तो इनकी फू लों से कभी राजा महाराजाओं द्वारा भी होली खेली खेलने का जिक्र मिलता है। रासायनिक रंगों की जगह प्रकृतिक रंगों का उपयोग होता था। इसके रंग कई दिनों तक बिना किसी नुकसान के नजर आते थे। प्राचीन काल में इसके फू लों का इस्तेमाल कपड़ों को रंगने के लिए किया जाता था। पलाश के फू ल से बने रंग से होली खेलने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है।

होली के गीतों में भी टेसू का जिक्र

वसंत ऋ तु के आगमन होते ही जंगलों में खिलने वाले टेसू के रंग बिरंगी फू ल हर तरफ नजर आने लगते हैं। शहरी क्षेत्रों से निकलते ही खेतों व जंगलों में फू लों की बहार आने लगी है, जिससे वातावरण की सुंदरता बढ़ गई है। होली के दौरान गाए जाने वाले गीतों में भी टेसू के फूल का जिक्र मिलता है। कविता में भी फू लों का गुणगान किया है।

विशुद्ध रूप से प्राकृतिक निर्मित

जिले के पंडरिया, बोड़ला के जंगलों से लेकर शहरी क्षेत्रों के खेतों पर इन दिनों चटख लाल केसरिया रंग की फू लों की बहार है। पलाश(टेसू) अपनी विशिष्ट रंग और खूबसूरती के चलते पेड़ों पर लाल रंग के फू ल लोगों को बरबस ही आकर्षित करती है। लेकिन होली में इस फू ल का महत्व और भी बढ़ जाता है।
विशुद्ध रूप से प्रकृति निर्मित इस रंग से होली का त्योहार और भी रंगीन नजर आता है। रासायनिक रंगों के इस दौर में आज भी कई जगह पलाश के फू लों की डिमांड है। इसके सिंदूरी लाल रंग की काफ ी मांग है। लोग वनांचल से इसकी खरीदी करते हैं।

Hindi News / Kawardha / Holi 2025: बैगा आज भी टेसू के फूल से ही रंग बनाकर खेलते हैं होली, जानें इसकी मान्यताएं..

ट्रेंडिंग वीडियो