निमाड़ी बोली मप्र के पूर्वी और पश्चिमी निमाड़, साथ ही मालवा और भोपाल अंचल में भी व्यापक रूप से बोली जाती है। पद्मश्री पं. रामनारायण उपाध्याय, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जगदीश विद्यार्थी जैसे महापुरुषों ने 1953 में इसके साहित्यिक सृजन और संरक्षण की नींव रखी। इसके बाद कई संस्थाएं बनीं, बिखरीं, फिर एकजुट हुईं। वर्ष 2001 में ‘अखिल निमाड़ लोक परिषद’ के गठन के साथ प्रयासों को नई दिशा मिली। वर्तमान में हरीश दुबे की अध्यक्षता में यह परिषद सक्रिय है।
निमाड़ी अब केवल प्रिंट साहित्य तक सीमित नहीं है। युवाओं ने इसे सोशल मीडिया के ज़रिए जीवंत कर दिया है। इंस्टाग्राम पर 50 से ज्यादा निमाड़ी अकाउंट, रील्स और शॉर्ट वीडियो की भरमार है। खरगोन के सौरभ भालसे और उनकी बहन निमाड़ी रील्स बना रहे हैं। खंडवा के निमिष भंसाली भी एक्टिव है। हाल ही में उन्होंने दादाजी धाम में भूमिपूजन का एड भी निमाड़ी में ही बनाया।
वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने लंदन में बसे खंडवा और खरगोन के प्रवासी लोगों के बीच निमाड़ी संगोष्ठी आयोजित कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी उपस्थिति दर्ज कराई। साहित्यकार सुनील चौरे उपमन्यु न सिर्फ निमाड़ी कविता और व्यंग्य लिखते हैं बल्कि आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी इस बोली की प्रस्तुति दे चुके हैं। उनकी टीम नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए योजनाओं पर जनजागरुकता भी फैलाती है। धरगांव के उदयसिंह अनुज, खंडवा के दिवंगत साहित्यकार सफदर रज़ा खंडवी ने निमाड़ी में गजल भी लिखी है।
अखिल निमाड़ लोक परिषद द्वारा निमाड़ी लोक कथाएं, लघु कथाएं और गजलें संकलित की जा रही हैं। खंडवा की जननायक टंट्या मामा यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में निमाड़ी साहित्य मौजूद है। यहां निमाड़ी विभाग खोलने की मांग भी की गई है। पूर्व सैनिक मनीमोहन चौरे ने इस बोली के व्याकरण पर गहन शोध किया है। राजभाषा अधिनियम के अनुसार किसी बोली को भाषा बनाने के लिए व्याकरण, इतिहास, लिपिबद्ध साहित्य आदि की आवश्यकता होती है, जिन पर लगातार काम हो रहा है।