लेकिन 31 मार्च तक कंपनी 167 मिलियन टन कोयला खनन कर सकी। यह लक्ष्य से 39 मिलियन टन कम है। उत्पादन में गिरावट का सबसे बड़ा कारण कोयला खदानों के समक्ष जमीन की संकट है। कोयला कंपनी ने अपने खदानों का समय-समय पर विस्तार किया है। इसके लिए खदान से लगे आसपास की जमीन का अधिग्रहण किया है। जिसमें सरकारी और निजी खाते की जमीन है।
कोयला कंपनी को सबसे अधिक परेशानी निजी खातों की जमीन से हो रही है। अधिग्रहित जमीन को कंपनी खाली नहीं करा पा रही है।
इसके पीछे खातेदारों का तर्क है कि उन्हें कंपनी ने जमीन अधिग्रहण के समय जो वादा किया था उसे पूरा नहीं किया है। नौकरी, पुनर्वास और मुआवजा को लेकर खदान से प्रभावित लोगों का कोयला कंपनी के साथ टकराव चल रहा है और इसका असर कोयला उत्पादन पर देखा जा रहा है। कंपनी पूरी क्षमता से कोयला खनन नहीं कर पा रही है। इसका असर यह हुआ है कि कोयला मंत्रालय की ओर से जो लक्ष्य दिया जा रहा है वह पूरा नहीं हो रहा है।
उत्पादन के क्षेत्र में नंबर दो एक समय था जब एसईसीएल कोयला उत्पादन के क्षेत्र में नंबर-वन कंपनी हुआ करती थी। कंपनी अपना यह स्थान कोल इंडिया की अनुषांगिक कंपनियों में बरकरार नहीं रख सकी। जैसे-जैसे खनन में गिरावट आई, कंपनी का रैंक गिरता गया। आज कंपनी दूसरे स्थान पर है। कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ने एक बार फिर नंबर-वन स्थान प्राप्त किया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में एमसीएल ने 225 मिलियन टन कोयला खनन किया है।