Father’s Day Today : “ये खेल है तकदीरों का”, वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों को अपने लाड़लों से कोई शिकायत नहीं
Father’s Day Today : आज पितृ दिवस है यानि Father’s Day। पर कुछ बच्चों ने अपने पिता को वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है। पर इन पिताओं को अपने लाड़लों से कोई शिकायत नहीं है। दिल में दर्द जरूर है पर चेहरे पर मुस्कुराहट है और जुबां पर तारीफ। पढ़ें कोटा के वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों की कहानी।
Father’s Day Today : सुबह जगाने से लेकर तैयार कर स्कूल भेजने की जिमेदारी मां निभाती है। बात जब ख्वाहिशों को पूरा करने की हो तो पिता हर बोझ उठाने को तैयार हो जाता है। चाहे कांधे पर बोरियां उठानी पड़े या सुबह से रात तक जीतोड़ मेहनत करनी पड़े। बदले में कोई चाह नहीं, बस किसी तरह आंखों के तारे का हर सपना सच हो जाए, वह खुश रहे। ऐसी ही कहानी है सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के वृद्धा आश्रम कोटा में रह रहे बुजुर्गों की। किस हाल में, किन परिस्थतियों ने उन्हें आश्रम की सीढिया चढ़ने को विवश किया, लेकिन इनके चेहरे पर मुस्कुराहट व जुबां पर अपनों की तारीफ के सिवा कुछ नहीं। बात की तो कुछ की आंखे डबडबा गई, पर चेहरे की मुस्कान को कायम रखा।
कोटा शहर के एक आश्रम में आवासित मेहरबान अपने हालातों पर किसी को कोई दोष नहीं देते। वे कहते हैं कि हम जब कहीं किसी की भावनाओं के अनुरूप खुद को नहीं ढाल सकते तो बेहतर है, अपना रास्ता अलग बना लें। आश्रम प्रबंधन के अनुसार मेहरबान अज्ञात अवस्था में करीब डेढ़ साल पहले आश्रम में आए थे। खुद बीएससी पास है और आयुर्वेद में विशारद भी की है। वह बताते हैं कि जब जो तकदीर ने करवाया वही कर लिया। नौकरी भी की, खुद का व्यवसाय भी किया। दो बेटे और एक बेटी है। दोनों ही यूपी में अच्छी नौकरी में हैं। वे बताते हैं कि कभी किसी को दोष नहीं देना चाहिए। आश्रम में बेहद खुश हैं।
मैं खुश हूं मेरे आंसूओं पर न जाना…
ठाकुरदास हंसमुख है, लेकिन बातचीत की तो मन भर आया। चार साल से आश्रम में रह रहे हैं। वे बताते हैं कि एक बेटा नौकरी में चला गया, एक बेटा अन्य कार्य करता है। पत्नी के गुजर जाने के बाद खुद को अकेला महसूस किया तो यहां आ गए। वे बताते हैं कि हर जीवन में कोई न कोई संघर्ष होता है। कोई भी व्यक्ति परिवार के हर व्यक्ति को खुश भी तो नहीं रख सकता, जो भी हो यहां मैं मजे में हूं। किसी बात का मलाल नहीं है।
मदनलाल के भी तीन बेटे व बेटियां हैं। बेटियां अपने घर चली गई। बेटे व्यवसाय करते हैं। पत्नी के निधन के बाद अकेलापन महसूस हुआ तो आश्रम में आ गया। वे बताते हैं कि परिवार में समय-समय पर बात हो जाती है। वे बताते हैं कि बेटे अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं, पोते स्कूल चले जाते हैं तो घर पर सूनापन अच्छा नहीं लगता। बेटे घर बुलाते भी हैं, लेकिन अब यहां अच्छा लगता है।
आश्रम में 25 सदस्य
आश्रम के मनोज जैन आदिनाथ व वीरेन्द्र आदिनाथ के अनुसार यहां 25 आवासित बुजुर्ग हैं। इनमें 14 पुरुष हैं। सभी अलग-अलग परिस्थतियों में यहां रह रहे हैं। कुछ तो इनके पास जो ज्ञान, हुनर है उसे सभी के साथ साझा कर रहे हैं। एक ने तो किचन गार्डन ही तैयार कर दिया।