चीन, पाकिस्तान समेत कई देशों के लोगों कैद में
पीड़ितों ने के मुताबिक, डिजिटल अरेस्ट गैंग के लोग 70 हजार से एक लाख रुपये प्रति माह सैलरी की लालच देकर कभी बैंकॉक तो कभी पश्चिम बंगाल होते हुए म्यांमार ले जाते थे। म्यांमार बॉर्डर पर उनका एक ठिकाना था वहीं एक फ्लैट के हॉल में 15 से 20 लोगों को रखा जाता था। उन्हें लैपटॉप देते थे और डिजिटल अरेस्ट, शेयर मार्केट में निवेश के नाम पर साइबर क्राइम कराते थे। बंधक युवाओं में कोई पांच तो कोई आठ माह से काम कर रहा था। इनमें चीन, पाकिस्तान समेत कई देशों के लोग शामिल थे।
18 घंटे कराया जाता था काम
गैंग के गिरफ्त से छुटे युवाओं के मुताबिक, उनसे 18 घंटे काम लिया जाता था। सिर्फ चार घंटे सोने को मिलते थे। काम के दौरान पलक झपकने पर यातनाएं दी जाती थी। उनके सुरक्षाकर्मी लड़कों के साथ मारपीट करते थे और बाल नोच देते थे, जबकि लड़कियों की चोटी खिड़की से बांध देते थे। जांच में सामने आया है कि गैंग के खिलाफ एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग थाने में चार मामले दर्ज हैं। आईटी पेशेवरों में लखनऊ के मो. अनस, अमन सिंह, विपिन यादव, सुल्तान सलाउद्दीन, तौसीफ शामिल हैं। इनके अलावा जौनपुर, महराजगंज, गोंडा, गोरखपुर के युवक शामिल हैं। लखनऊ लाए गए लोगों में गोंडा में नवाबगंज क्षेत्र के दो, मनकापुर थाना क्षेत्र का एक युवक शामिल हैं।