प्रमुख मांगे: संविदा कर्मियों का दर्द
1. 18,000 रुपये प्रतिमाह वेतन की मांगसंविदा कर्मियों का कहना है कि मौजूदा वेतन उनकी जरूरतों को पूरा करने में विफल है। वे 18,000 रुपये प्रतिमाह वेतन की मांग कर रहे हैं, जो बढ़ती महंगाई के बीच उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान कर सके।
बिजली विभाग में निजीकरण को लेकर संविदा कर्मियों में जबरदस्त असंतोष है। उनका मानना है कि निजीकरण से उनकी नौकरी असुरक्षित हो जाएगी और कामकाजी परिस्थितियां और अधिक कठिन हो जाएंगी।
बिजली विभाग में काम के दौरान संविदा कर्मियों को कई बार जानलेवा दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। प्रदर्शनकारी मांग कर रहे हैं कि ऐसी घटनाओं में उनके परिवारों को आर्थिक सहायता दी जाए।
लखनऊ में शीतलहर का कहर: 1 से 8 तक के स्कूल 17 जनवरी को बंद, डीएम का आदेश
धरने का माहौल: नारेबाजी और आक्रोश
संविदा कर्मियों ने धरने के दौरान “निजीकरण वापस लो” और “हमारा हक हमें दो” जैसे नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि विभाग उनकी समस्याओं को अनदेखा कर रहा है। प्रदर्शनकारियों के नेता ने मीडिया से कहा, “हमारे साथ अन्याय हो रहा है। सरकार को हमारी मांगे माननी होंगी।”प्रदर्शन के कारण राजधानी में हलचल
हजरतगंज के गोखले मार्ग पर प्रदर्शन के चलते यातायात बाधित हो गया है। स्थानीय दुकानदार और निवासी भी इस प्रदर्शन से प्रभावित हुए हैं। प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने की अपील की है, लेकिन प्रदर्शनकारी अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं।योगी सरकार ने विशाख जी. अय्यर को बनाया लखनऊ का नया डीएम
सरकार और प्रशासन का रुख
उत्तर प्रदेश सरकार ने संविदा कर्मियों की मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया है। ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान जल्द ही निकाला जाएगा। हालांकि, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे तब तक नहीं हटेंगे, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं की जातीं।कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने भी संविदा कर्मियों का समर्थन किया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार संविदा कर्मियों की अनदेखी कर रही है और उनकी समस्याओं का समाधान करने में विफल रही है।
उत्तर प्रदेश में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल: लखनऊ डीएम समेत 31 आईएएस और 3 मण्डलायुक्त अधिकारियों का तबादला
संविदा कर्मियों की मांगों पर विशेषज्ञों की रायविशेषज्ञों का मानना है कि संविदा कर्मियों की मांगें जायज हैं। निजीकरण का फैसला जहां एक ओर दक्षता बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी ओर इससे संविदा कर्मियों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है।