पंचायत चुनाव: सियासी दलों के लिए लिटमस टेस्ट क्यों?
उत्तर प्रदेश की करीब दो तिहाई यानी 269 विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्रों में आती हैं । ऐसे में पंचायत चुनाव में साफ हो जाएगा कि कौन सा दल कितने पानी में है क्योंकि पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरे होते होते ही विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो जाएगी। पंचायत चुनाव में 57 हजार 691 ग्राम प्रधान, 826 ब्लॉक प्रमुख, 3 हजार 200 जिला पंचायत सदस्य और 75 जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए चुनाव होने हैं। यानी यह एक ऐसा नेटवर्क है जो हर गांव-वार्ड में वोटर को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।पिछले पंचायत चुनाव में निर्दलीय थे किंगमेकर
2021 के पंचायत चुनाव में बीजेपी ने 75 में से 67 जिला पंचायत अध्यक्ष बनाए, लेकिन पंचायत सदस्यों के चुनाव में सपा 759 सीट, बीजेपी 768 सीट, बसपा को 319 सीट, कांग्रेस को 125, आप को 64 सीटों पर और 944 निर्दलियों ने जीत हासिल की थी। यानी सत्तारुढ बीजेपी से भी ज्यादा निर्दलीयों ने बाजी मारी थी। बीजेपी ने बड़ी संख्या में निर्दलीयों को समर्थन देकर अध्यक्षी सीटों पर कब्जा जमाया। इससे यह भी जाहिर हुआ कि भले ही पार्टी सिंबल न हो, पर संगठन और सत्ता की ताकत अहम होती है।लेकिन 2026 में भूगोल बदलने से बदलेंगे समीकरण
पंचायत चुनाव से पहले नए सिरे से परिसीमन किया जा रहा है जिससे पंचायतों का भूगोल तो बदलेगा ही सियासी समीकरण भी बदल जाएंगे । सरकार ने पंचायतों के पुनर्गठन के लिए डीएम की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति बनाई है। परिसीमन की प्रक्रिया में यह तय किया जा रहा है कि कौन-कौन सी ग्राम पंचायतें शहरी सीमा में आ गई हैं, और किन्हें जोड़ा या हटाया जाएगा।2027 से पहले कौन कितने पानी में?
बीजेपी – प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति अब तक लंबित, जिससे संगठनात्मक असंतुलन है।पिछली बार की तरह फिर से निर्दलीयों को साधकर जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने की तैयारी। लेकिन 2024 लोकसभा में सीटें घटने से चिंताएं बढ़ी हैं।
जातीय सर्वेक्षण और मंडल राजनीति के जरिए ग्राम स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश। पंचायत चुनाव में ज्यादा अधिकृत प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की योजना।