उन्होंने कहा कि सत्संग आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। सत्संग से पाप कटते हैं। जीवन सुधरता है। संसार में सब कुछ आसानी से हासिल किया जा सकता है, लेकिन सत्संग दुर्लभ है। नारद मुनि ने युधिष्ठर को चारों आश्रम, चार जाति, धर्म के लक्षण तथा गृहस्थ में आदमी को कैसे रहना चाहिए आदि के बारे में बताया । अच्छे गृहस्थी को परिवार में सामजंस्य से रहना चाहिए व परिजनों का ख्याल रखते हुए एक दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। मन, कर्म व वचन से किसी को भी तकलीफ ना हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। सदा सत्य बोले, मीठा बोले। संत ने महामृत्युजंय मंत्र के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि महिलाओं का गुरु उसका पति होता है। पति के प्रति आदर रखना चाहिए।
कथा के दौरान संत गोरधनदास रामस्नेही, पर्यावरण प्रेमी नरेन्द्र जोशी, सत्यनारायण नागर, पंडित ओमप्रकाश तिवाड़ी, पुखराज शर्मा, रामनारायण शर्मा, हरिदत्त शर्मा, ओमपुरी, जुगलकिशोर शर्मा आदि ने व्यवस्था में सहयोग किया। रात को रात को साढ़े आठ बजे से संत गोरधनदास ने नानीबाई का मायरा की कथा सुनाई।