गौरतलब है कि राजस्थान में पुराने सरकारी मेडिकल कॉलेजों का दबाव कम करने और अधिक डॉक्टर तैयार करने के लिए पिछले एक दशक में 15 से अधिक नए सरकारी मेडिकल कॉलेज खोले जा चुके हैं। इसमें नागौर का मेडिकल कॉलेज भी शामिल है, जो पिछले साल शुरू किया गया था। नए खोले मेडिकल कॉलेजों की तरह नागौर का कॉलेज भी क्लासरूम, स्टाफ और आधी अधूरी फैकल्टी सहित अन्य समस्याओं से जूझ रहा है। हालात यह है कि 50 से 70 प्रतिशत तक चिकित्सक शिक्षकों का अभाव है, काम चलाने के लिए कुछ शिक्षक जोधपुर से डेपुटेशन पर लगाए गए हैं।
11 लाख फीस लेने के बावजूद सुविधा नहीं मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कॉलेज में अब तक मात्र एक लेक्चर थियेटर बन पाया है, न तो लैब सुचारू रूप से शुरू हो पाई है और न ही लाइब्रेरी। स्टूडेंट्स ने बताया कि आधी सीटें मैनेजमेंट कोटे से भरी गई हैं, यानी उनसे फीस के 11-11 लाख रुपए लिए जा रहे हैं, इसके बावजूद समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हॉस्टल का निर्माण कार्य भी अधूरा है। सफाई भी समय पर नहीं होती। पिछले छह महीने से तो निर्माण कार्य ही बंद था। दो -तीन महीने बाद अगला बैच आ जाएगा, ऐसे में कई परेशानियां आएंगी।
धीरे-धीरे सुधार हो रहा है मेडिकल कॉलेज में फिलहाल एक ही लेक्चर रूम है, जहां प्रथम बैच के मेडिकल छात्रों को पढ़ाया जा रहा है। कॉलेज में मानव देह सहित अन्य अंग भी आ गए हैं। पानी की सप्लाई सुचारू नहीं होने से परेशानी हो रही है। धीरे-धीरे व्यवस्थाएं सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।
– डॉ. देवकिशन देवड़ा, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज, नागौर