क्यों लिया गया फैसला?
यह फैसला कई समय पहले पिछले साल अगस्त में सदन के आखिरी सत्र में ही ले लिया गया था, लेकिन इसे इसी सत्र से लागू किया गया है। असम विधानसभा में लागू इस सहूलियत के तहत मुस्लिम विधायकों को जुमे की ‘नमाज’ अदा करने के लिए दो घंटे का ब्रेक दिया जाता था। जिस पर अब रोक लगा दी गई है। विपक्ष ने सदन के इस फैसले पर सख्त ऐतराज़ जताया जा रहा है। इसे बहुसंख्यकों की मनमानी बताया है।
किसने रखा प्रस्ताव?
स्पीकर बिस्वजीत दैमारी ने “संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का हवाला देते हुए यह प्रस्ताव दिया था कि असम विधानसभा को किसी भी अन्य दिन की तरह शुक्रवार को अपनी कार्यवाही का संचालन करना चाहिए। इस प्रस्ताव को समिति के सामने रखा गया और सर्वसम्मति से पास कर दिया गया।
विपक्ष में हो रहा विरोध
इस पर असंतोष व्यक्त करते हुए एआईयूडीएफ विधायक रफीकुल इस्लाम ने कहा कि यह संख्या बल के आधार पर थोपा गया निर्णय है। पीटीआई ने इस्लाम के हवाले से कहा, “विधानसभा में करीब 30 मुस्लिम विधायक हैं। हमने इस कदम के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए थे। लेकिन उनके (भाजपा के) पास संख्याबल है और वे उसी के आधार पर इसे थोप रहे हैं।”
CM हिमंत बिस्वा सरमा ने फैसले को स्वीकारा
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला द्वारा 1937 में शुरू की गई प्रथा थी, और ब्रेक को बंद करने के फैसले ने “उत्पादकता को प्राथमिकता दी और औपनिवेशिक बोझ के एक और निशान को हटा दिया”।
पहले क्या था नियम?
असम विधानसभा में लागू इस परंपरा के तहत मुस्लिम विधायकों को जुमे की ‘नमाज’ अदा करने के लिए दो घंटे का ब्रेक दिया जाता था. यानी इस दौरान सदन की कार्यवाही नहीं होती थी. विपक्ष ने सदन के इस फैसले पर सख्त ऐतराज़ जताते हुए इस बहुसंख्यकों की मनमानी बताया है.