चुनावी वादों को पूरा करना बड़ी चुनौती
नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती घोषणापत्र में घोषित स्कीम और प्रोजेक्ट के लिए धन की व्यवस्था करना होगी। शहर की वित्तीय स्थिति निश्चित रूप से दबाव में है और आने वाली सरकार को चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं से किए गए वादों को पूरा करने के लिए कुछ जोड़-तोड़ की आवश्यकता होगी।वादों को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष चाहिए 18,500 करोड़ रुपये
एक सरकारी अधिकारी के अनुसार, चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सरकार को प्रति वर्ष कम से कम 18,500 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। सरकार को बुनियादी ढांचे के लिए धन जुटाना होगा। राज्य अस्पताल, दिल्ली मेट्रो फेज-4 और मेट्रो के अन्य चरणों के लिये लिए गए लोन का भुगतान करना एक बड़ी चुनौती होगी।तीन प्रमुख योजनाओं से हो रहा नुकसान
चुनाव से पहले वित्त विभाग ने मुख्यमंत्री आतिशी को दिल्ली की वित्तीय स्थिति से अवगत कराया था। विभाग ने सीएम को बताया था कि तीन प्रमुख सब्सिडी योजनाओं के कारण इस वर्ष राज्य के खजाने को लगभग 4,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसमें बिजली सब्सिडी के लिए 3,600 करोड़ रुपये, मुफ्त पानी के लिए 500 करोड़ रुपये और सरकारी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा के लिए 440 करोड़ रुपये शामिल हैं। यदि नकदी संकट से जूझ रहे दिल्ली परिवहन निगम और दिल्ली जल बोर्ड को सरकार की सहायता दी जाती है, तो खर्च 10,000 करोड़ रुपये से अधिक होगा।ये वादे डालेंगे राज्य के खजाने पर भारी वित्तीय बोझ
चुनाव के दौरान किए गए अन्य वादे भी राज्य के खजाने पर भारी वित्तीय बोझ डालेंगे। उदाहरण के लिए, एक पार्टी ने वरिष्ठ नागरिकों को निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज देने का वादा किया है, जबकि दूसरी पार्टी ने छोटे व्यापारियों और उद्यमियों को मासिक पेंशन देने का आश्वासन दिया है।यह भी पढ़े- Avadh Ojha: चुनावी पाठशाला में ‘फेल’ हुए मास्टर जी अवध ओझा! अब क्या होगा भविष्य?
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