कोर्ट ने पति के पक्ष में सुनाया फैसला
शीर्ष अदालत ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के निष्कर्षों को खारिज करते हुए अपीलार्थी पति के पक्ष में फैसला दिया। ट्रायल कोर्ट ने 2001 में पति को दोषी ठहराया था और 2013 में हाईकोर्ट ने इसे बरकरार रखा था। यह साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं था कि पति ने महिला को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था या जानबूझकर मजबूर किया था।
जानिए पूरा मामला
यह मामला करीब 30 साल पुराना है। उत्तराखंड में एक महिला की वैवाहिक घर में जलने से मौत हो गई थी। मृतका के परिवारवालों के मुताबिक, महिला उसके पति ने छोड़ दिया था और कथित तौर पर किसी दूसरी महिला के साथ रहने लग गया था। महिला के परिवार ने उस शिकायत का भी हवाला दिया जो महिला ने उस स्कूल के प्रिंसिपल को लिखी थी जहां उसका पति काम करता था। यह मामला पुलिस तक पहुंच गया था। इसके बाद पुलिस ने समझौता कर लिया था। आरोप है कि महिला की मौत से दो दिन पहले भी झगड़ा हुआ था। ‘पुराने झगड़ों के आधार पर सुसाइड के लिए पति जिम्मेदार नहीं’
ट्रायल कोर्ट ने साल 2001 में पति को दोषी ठहराया और हाई कोर्ट ने 2013 में दोषसिद्धि की पुष्टि की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि हम परिस्थितियों को सच भी मान लेते है तो भी आईपीसी की धारा 306 के तहत ये साबित करने के लिए प्रयाप्त नहीं है कि पति ने उसे आत्महत्या के लिए उकराया। शीर्ष कोर्ट ने दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि केवल तनावपूर्ण संबंधों के आधार पर नहीं की जा सकती। इसके लिए उकसावे के साफ और तात्कालिक सबूतों की चाहिए।