छूट खत्म होने की कहानी
20 मार्च 2020 को कोविड-19 महामारी की शुरुआत के साथ ही रेल मंत्रालय ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए दी जाने वाली छूट को बंद कर दिया था। उस समय तक 60 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष और ट्रांसजेंडर को सभी श्रेणियों के टिकटों पर 40% छूट और 58 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं को 50% छूट मिलती थी। इस फैसले के बाद वरिष्ठ नागरिकों को सामान्य यात्रियों की तरह पूरा किराया देना पड़ रहा है। RTI से मिले आंकड़ों के मुताबिक, 20 मार्च 2020 से 28 फरवरी 2025 तक 31.35 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों (पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर) ने बिना छूट के यात्रा की, जिससे रेलवे को अतिरिक्त 8,913 करोड़ रुपये की कमाई हुई।
RTI से खुला राज
मध्य प्रदेश के RTI कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौर ने इस मामले में कई आवेदन दायर किए। उन्होंने बताया, “मैंने 20 मार्च 2020 से लेकर मार्च 2025 तक रेल मंत्रालय से कई RTI के जरिए जानकारी मांगी। जब मैंने डेटा का विश्लेषण किया, तो पाया कि 18.279 करोड़ पुरुष, 13.065 करोड़ महिलाएं और 43,536 ट्रांसजेंडर वरिष्ठ नागरिकों ने इस अवधि में यात्रा की।” उन्होंने आगे बताया कि कुल राजस्व का लिंग-वार ब्योरा इस प्रकार है: - पुरुष यात्रियों से: 11,531 करोड़ रुपये
- महिला यात्रियों से: 8,599 करोड़ रुपये
- ट्रांसजेंडर यात्रियों से: 28.64 लाख रुपये
गौर के अनुसार, इन सभी यात्रियों से कुल 20,133 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। पुरुष और ट्रांसजेंडर यात्रियों के लिए 40% और महिलाओं के लिए 50% छूट को हटाने के कारण रेलवे को 8,913 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय हुई।
रेलवे का तर्क: सभी को मिल रही है सब्सिडी
वरिष्ठ नागरिकों की छूट बहाल करने की मांग संसद में कई बार उठ चुकी है। विपक्षी सांसदों और सामाजिक संगठनों ने इस मुद्दे पर सरकार से सवाल किए, लेकिन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हर बार यही तर्क दिया कि रेलवे पहले से ही सभी यात्रियों को औसतन 46% की सब्सिडी दे रहा है। उन्होंने 19 मार्च 2025 को लोकसभा में अपने लिखित जवाब में कहा, “भारतीय रेलवे समाज के सभी वर्गों के लिए किफायती सेवाएं देने के लिए प्रतिबद्ध है। साल 2022-23 में रेलवे ने यात्री टिकटों पर 56,993 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी। इसका मतलब है कि अगर सेवा की लागत 100 रुपये है, तो यात्री को केवल 54 रुपये का टिकट मिलता है। यह सब्सिडी सभी यात्रियों के लिए जारी है।” वैष्णव ने यह भी बताया कि कुछ खास वर्गों, जैसे दिव्यांगजन, मरीज और छात्रों के लिए अतिरिक्त छूट अभी भी दी जा रही है। हालांकि, वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष छूट को बहाल करने का कोई संकेत सरकार की ओर से नहीं मिला है।
क्या है विवाद?
वरिष्ठ नागरिकों की छूट बंद होने से बुजुर्गों को यात्रा करना महंगा पड़ रहा है। कई संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह फैसला उन लोगों के लिए अन्यायपूर्ण है, जो सीमित आय पर निर्भर हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बुजुर्गों के लिए रेल यात्रा अब पहले जितनी सुलभ नहीं रही। गौर ने अपनी RTI के आधार पर सवाल उठाया, “एक आम नागरिक अपने जीवनभर टैक्स देता है। क्या वरिष्ठ नागरिक बनने पर उसे रियायती रेल टिकट की सुविधा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए?” दूसरी ओर, रेलवे का कहना है कि कोविड के बाद से उसका वित्तीय बोझ बढ़ा है। 2020 और 2021 में ट्रेन सेवाएं बंद होने से रेलवे को भारी नुकसान हुआ था। छूट हटाने का फैसला उस समय लिया गया, जब रेलवे अपनी आय बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहा था। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “2017-18 में सब्सिडी 45,000 करोड़ रुपये थी, जो 2022-23 में बढ़कर 56,993 करोड़ रुपये हो गई। यह दर्शाता है कि रेलवे यात्रियों के लिए पहले से ही काफी कुछ कर रहा है।”
भविष्य की संभावनाएं
वरिष्ठ नागरिकों की छूट बहाल करने की मांग को लेकर संसद से लेकर सड़क तक बहस जारी है। कुछ सांसदों ने सुझाव दिया है कि छूट को सीमित रूप में, जैसे कि केवल स्लीपर और सामान्य श्रेणी के लिए, बहाल किया जा सकता है। लेकिन रेलवे का कहना है कि इससे उसका वित्तीय संतुलन बिगड़ सकता है। 2025-26 के लिए रेलवे का लक्ष्य अपनी आय को 3 लाख करोड़ रुपये तक ले जाना है, जिसमें यात्री खंड से 92,800 करोड़ रुपये की उम्मीद है।
क्या कहते हैं लोग?
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई लोग इसे बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशील कदम बता रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि रेलवे को अपनी आय बढ़ाने के लिए ऐसे कदम उठाने जरूरी हैं। एक यूजर ने लिखा, “बुजुर्गों ने देश के लिए जीवनभर काम किया। क्या उन्हें रियायती यात्रा का हक नहीं?” वहीं, एक अन्य ने कहा, “रेलवे को भी अपनी लागत पूरी करनी है। सब्सिडी पहले से ही काफी है।”