ये महिलाएं न केवल हथियारों के साथ मोर्चा संभाल रही थीं, बल्कि उन्होंने पारंपरिक लैंगिक सीमाओं को भी ध्वस्त किया। यह केवल एक सैन्य कार्यवाही नहीं थी, बल्कि महिला सशक्तीकरण का सशक्त प्रदर्शन था – एक ऐसा क्षण, जहां ‘सिंदूर’ सिर्फ परंपरा का प्रतीक नहीं रहा, बल्कि गर्व, बलिदान और संघर्ष का रंग बन गया। यह रिपोर्ट जम्मू के पर्गवाल सेक्टर के बॉर्डर पर तैनात बीएसएफ की साहसी अधिकारी, सहायक कमांडेंट नेहा भंडारी और उनकी टीम की जबानी उस ऐतिहासिक मिशन की कहानी है, जिसने भारतीय सैन्य इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।
मैं लड़कियों को याद दिलाती रही- जिंदा रहेंगे, तभी अधिक दुश्मनों को मारेंगे : -नेहा भंडारी
तारीख: 10 मई, समय: दोपहर 3 बजे, जगह: पर्गवाल सेक्टर, भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा। मैंने सबको ब्रीफ कर दिया था, क्या करना है, कैसे करना है। हर जवान पूरी तैयारी में था, लेकिन सबसे ज्यादा गर्व मुझे मेरी लड़कियों पर था। उनमें एक अलग ही जोश था, लेकिन साथ ही अनुशासन भी। ना कोई ओवर-रिएक्शन, ना घबराहट। जैसे ही पाकिस्तानी पोस्ट से फायर आया, मैंने तुरंत सबको लाइन पर लिया और सिर्फ एक बात कही, ‘मौका मिला है, दिखा दो अपना दम।’ बस फिर क्या था- अलग-अलग हथियारों से जवाबी फायर शुरू हो गया। गोलियों की आवाज के साथ जवानों का हौसला भी बढ़ने लगा। मेरे दिमाग में एक बात बिल्कुल साफ थी – हमारी अपनी कोई कैजुअल्टी नहीं होनी चाहिए। मैं लगातार रेडियो पर लड़कियों को याद दिला रही थी, ‘जिंदा रहेंगे, तभी अधिक दुश्मनों को मारेंगे।’ जब दुश्मन की तरफ से बम आने लगते हैं और उन्हें सामने गिरते दिखते हैं तो ऐसा लगता है जैसे अगला आपके ऊपर ही गिरेगा। लेकिन मेरी लड़कियों ने जान की परवाह किए बिना, जहां-जहां से जवाब देने को कहा गया, वहां-वहां से उन्होंने सटीक फायर कर पाकिस्तानी फौज को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। हमारी दो पोस्ट पर तैनात लड़कियों का चेहरा उस वक्त देखने लायक था। ट्रेनिंग के बाद पहली बार युद्ध में भाग लेने की चमक उनकी आंखों में थी। एक लड़की ने मुझसे कहा, ‘मैम, आज हमें पाकिस्तान की तरफ फायर करने का मौका मिला है।’
8 मई से हम ऑपरेशन सिंदूर के चलते पूरी तरह अलर्ट मोड में थे। ना ठीक से खाना खाया जा रहा था, ना ही नींद पूरी हो रही थी। दिमाग में बस एक ही बात थी-अगर पाकिस्तान ने कुछ किया, तो इस बार जवाब ऐसा होगा कि इतिहास उसकी गवाही देगा। कहीं से भी कोई हलचल या सेलिंग होती, तो हम तुरंत रेडी हो जाते थे। ऊपर से उड़ते ड्रोन मूवमेंट की जानकारी पीछे आर्मी को देते रहते ताकि वे उसे टारगेट कर सकें और गिरा दें।
अग्रिम 2 पोस्ट पर तीन-तीन की संख्या में तैनात महिला कांस्टेबल्स ने पाकिस्तान की हाईटेक निगरानी कैमरों को अपने सटीक निशानों से मिट्टी में मिला दिया। इन्ही हाईटेक कैमरे से दुश्मन सेना की मूवमेंट पर नजर रख रहा था। जब सीजफायर हुआ तो कुछ ने मुस्कुरा कर कहा: ‘बहुत जल्दी फायर रोक दिया… हमें पाकिस्तान का और नुकसान करना था ।” मैंने सिर्फ एक चीज सुनिश्चित की- मेरे जवानों की जान को खतरा कम से कम रहे और दुश्मन को ऐसा जवाब मिले जिसे वो कभी भूल न सके। चाहें वो बम हों या गोलियां, हमारी हिम्मत उनसे कहीं बड़ी थी।
साक्षात्कारः सेना में लड़कियां सिविल लाइफ से कहीं अधिक सुरक्षित -नेहा भंडारी, सहायक कमांडेंट, बीएसएफ
-क्या महिला होने से चुनौतियां बढ़ीं? नेहा भंडारी: बिल्कुल नहीं, बल्कि यह हमारे लिए गर्व का मौका था। टीम में नई और अनुभवी दोनों तरह की महिला जवान थीं। भरोसे और ट्रेनिंग ने हमें मजबूती दी।
-मोर्चे पर किस-किस तरह की चुनौती?
नेहा भंडारी: नींद, खाना-सब कुछ पीछे छूट गया। लेकिन हमने पोस्ट नहीं छोड़ी। सीनियर्स ने शिफ्ट का विकल्प दिया, पर टीम ने डटे रहने का निर्णय लिया। -घर-परिवार की याद आती थी?
नेहा भंडारी: ज़रूर, पर ड्यूटी पहले। मां को चिंता होती थी, लेकिन मैंने उन्हें भरोसा दिलाया।
-लिंग आधारित पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा?
नेहा भंडारी: पहले कुछ लोगों को लगता था कि सीमा पर सिर्फ पुरुष ही काम कर सकते हैं। लेकिन अब यह सोच धीरे-धीरे बदल रही है। लोग हमें सराहते हैं और हमारा समर्थन करते हैं। हमारी ऑर्गेनाइजेशन में भी बहुत सपोर्टिव माहौल है।
-ऑपरेशन में लीडरशिप और टीम का योगदान?
नेहा भंडारी: हमारे सीनियर अधिकारियों और टीम का हम पर पूरा भरोसा था। उन्होंने हमें बताया कि हम कर सकते हैं और हमारा पूरा साथ दिया। यह हमारे लिए बहुत मोटिवेटिंग था।
-इस अनुभव ने क्या असर डाला?
नेहा भंडारी: इस अनुभव ने हम सभी को बहुत मजबूत बना दिया। हमें अब लगता है कि हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। हमारी टीम भावना और संगठन का भरोसा हमारी ताकत है।
-उन पैरेंट्स को क्या कहेंगी जो डरते हैं?
नेहा भंडारी: सेना में लड़कियों के लिए अब रिस्क नहीं बल्कि सुरक्षा है। समय-समय पर सभी से उनकी जरूरतों के बारे में पूछा जाता है। प्राइवेसी और जरूरी चीजों का प्रायोरिटी पर ध्यान रखा जाता है। सेना में लड़कियां सिविल लाइफ से कहीं अधिक सुरक्षित हैं।
-सोशल मीडिया ट्रैप से कैसे बचती हैं?
नेहा भंडारी: हम अपनी टीम को ट्रेनिंग देते हैं, काउंसलिंग करते हैं और उनके व्यवहार पैटर्न पर नजर रखते हैं। साइबर एक्सपर्ट द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है ताकि जवान दुश्मन देश के सोशल मीडिया ट्रैप से बच सकें।
-महिलाओं की ट्रेनिंग पुरुषों से अलग होती है?
नेहा भंडारी: हमारी ट्रेनिंग और उसमें आने वाली चुनौतियां पुरुषों के जैसी ही होती हैं। दुश्मन की गोली महिला या पुरुष नहीं देखेगी। वहां सिर्फ आपकी ट्रेनिंग काम आती है।