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अटल से नड्डा तक का 45 साल का सफर, इन विवादों से जुड़ा है भाजपा अध्यक्षों का नाम

अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले अध्यक्ष बने। लाल कृष्ण आडवाणी के कार्यकाल के दौरान बीजेपी को 85 सीटें आईं। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहते भाजपा को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला। बीजेपी के 45 साल के सफर में बीजेपी के अध्यक्षों का विवादों संग नाता रहा।

नई दिल्लीJul 04, 2025 / 04:15 pm

Pushpankar Piyush

साल 1980 में जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आई तो जनता सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे जगजीवन राम ने कहा कि वह दोहरी सदस्यता के मुद्दे को नहीं छोड़ेंगे। दोहरी सदस्यता से मतलब था जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दोनों की सदस्यता का एक साथ होना। सिर्फ जगजीवन राम ही नहीं, बल्कि उस समय जनता पार्टी के कई नेताओं को इस दोहरी सदस्यता से एतराज था।
चार अप्रैल को जनता पार्टी ने तय किया कि पार्टी के जनसंघ के घटक के नेता यदि RSS नहीं छोड़ेंगे तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। 5-6 अप्रैल को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला स्टेडियम (अब अरुण जेटली स्टेडियम) में बैठक की गई। इसमें जनसंघ और RSS से जुड़े तकरीबन 3 हजार लोगों ने भाग लिया और 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की नींव पड़ी।

पूर्व पीएम अटल बिहारी बने पार्टी के पहले अध्यक्ष (1980-1986)

देश के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के पहले अध्यक्ष बने। अपने पहले अध्यक्षीय भाषण में वाजपेयी ने कहा कि हम अपनी नई पार्टी का निर्माण करते हुए भविष्य की ओर देखते हैं। पीछे नहीं। हम अपनी विचारधारा और सिद्धांतों के आधार पर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने बीजेपी की विचारधारा में गांधीवादी समाजवाद अपनाने की बात कही। जनसंघ अब बीजेपी का रूप ले चुकी थी। चुनाव चिन्ह भी बदल चुका था। दीए की जगह कमल ने ले ली।
अटल बिहारी वाजपेयी के राजकुमारी कौल के साथ निजी रिश्ते संघ की आंखों में खटकते रहे। विनय सीतापति ने अपनी किताब जुगलबंदी में इस बात का जिक्र भी किया है। जनसंघ के जमाने से ही अटल के निजी रिश्ते से संघ को ऐतराज था। साल 1965 में इसी विषय पर RSS के सर संघचालक गुरु गोलवरकर, अटल से मिलने आए थे।
उन्होंने यह रिश्ता तोड़ने का आग्रह भी किया था, लेकिन वाजपेयी ने गुरु गोलवरकर की इस बात को मानने से इनकार कर दिया। वहीं, साल 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी अटल बिहारी के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली और नई नवेली पार्टी बीजेपी महज 2 सीटों पर सिमट गई।

समाजवादी गांधीवाद से हिंदू राष्ट्रवाद, आडवाणी बने अध्यक्ष

(पहली बार 1986-1989): 1986 में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बाद लाल कृष्ण आडवाणी ने बीजेपी की बागडोर संभाली। तब भाजपा के लोकसभा में सिर्फ दो सांसद थे। आडवाणी ने तय किया कि वह भाजपा को जनसंघ की हिंदुत्ववादी विचारधारा पर वापस ले जाएंगे। उन्होंने राम जन्मभूमि मंदिर का प्रस्ताव रखा। 1989 में बीजेपी का पालमपुर प्रस्ताव पास हुआ। इसका नजीता भी सामने आया। बीजेपी को चुनाव में 85 सीटें आईं। भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दिया।
(दूसरी बार 1993-1998): भाजपा को 2 से 85 तक ले जाने वाले आडवाणी को फिर से साल 1993 में पार्टी की कमान मिली। अब उनकी निगाह देश में पहले भाजपा प्रधानमंत्री बनाने पर थी। 1990 के दशक में भारत भारी आर्थिक व सामाजिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। इस साल 1996 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की कमान संभाल रहे थे। 12 नवंबर 1995 को मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता अपने अध्यक्ष को सुनने के लिए आतुर थे।
आडवाणी ने अपने भाषण में कहा- 1996 के लोकसभा चुनाव हम अटल बिहारी वाजपेयी की लीडरशिप में लड़ेंगे। वे ही हमारे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। उन्होंने नारा दिया- राजतिलक की करो तैयारी अबकी बारी अटल बिहारी। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 161 सीटें मिली। अटल बिहारी देश के पीएम बने। भाजपा पहली बार सत्ता के शीर्ष पर काबिज हुई, लेकिन यह सरकार 13 दिन बाद गिर गई। 1998 में फिर चुनाव हुए। भाजपा को फिर सबसे अधिक सीटें मिली। लेकिन, यह कार्यकाल भी 13 महीने चला। अटल बिहारी तीसरी बार पीएम बने और कार्यकाल पूरा किया।
(तीसरी बार 2004-2025): अटल बिहारी के राजनीति से सन्यास लेने के बाद आडवाणी को पीएम इन वेटिंग कहा जा जाने लगा, लेकिन इस बार पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना पर दिए बयान पर वह चौतरफा घिर गए। कहा जाता है कि संघ ने भी उनके बयान के बाद उनसे मुंह फेर लिया। उनकी प्रधानमंत्री बनने की हसरत अधूरी रह गई। वहीं, 1990 के दशक में आडवाणी का जैन हवाला कांड से नाम जुड़ा था। जैन हवाला केस में आरोप लगने पर लालकृष्ण आडवाणी को इस्तीफा देना पड़ा था। आडवाणी सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रहने वाले नेता हैं।

राम मंदिर आंदोलन, मुरली के हाथ में कमल की कमान

(1991-1993): 1991 में भाजपा अध्यक्ष बनने से लगभग पचास साल पहले मुरली मनोहर जोशी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े थे। अपने पूर्ववर्ती लालकृष्ण आडवाणी की तरह, उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने कार्यकाल के दौरान ही कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकारों में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया। उनके काल के दौरान भाजपा पहली बार मुख्य विपक्षी दल बनी।

अटल के सत्ता में आने के बाद कुशाभाऊ बने चीफ

(1998-2000): कुशाभाऊ ठाकरे RSS से जुड़े हुए थे। 1998 में जब वे भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के कुछ महीने बाद अध्यक्ष बने, तब वे भाजपा के बाहर बहुत प्रसिद्ध नहीं थे। उनके कार्यकाल के दौरान भाजपा ने हिंदुत्व पर अपना जोर कम कर दिया। गठबंधन की सरकार बनने के बाद बीजेपी अध्यक्ष ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की मांग पर जोर कम किया।

स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते दिखे बंगारू

(2000-2001): लंबे समय से आरएसएस के सदस्य रहे बंगारू लक्ष्मण 2000 में भाजपा के पहले दलित अध्यक्ष बने। एक साल बाद तहलका पत्रिका के स्टिंग ऑपरेशन में उन्हें रिश्वत लेते हुए दिखाया गया, जिसके बाद लक्ष्मण ने तुरंत इस्तीफा दे दिया। वे 2012 तक पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहे। जब उन्हें भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया गया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
(2001-2002): लक्ष्मण के इस्तीफे के बाद तमिलनाडु से आने वाले जन कृष्णमूर्ति कार्यवाहक अध्यक्ष बने और कुछ ही समय बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उन्हें अध्यक्ष के रूप में पुष्टि कर दी। एक साल बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए।
(2002-2004): जन कृष्णमूर्ति को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के बाद नायडू भाजपा अध्यक्ष चुने गए। उनके चुनाव को लालकृष्ण आडवाणी और पार्टी के रूढ़िवादी हिंदू-राष्ट्रवादी विंग द्वारा फिर से नियंत्रण स्थापित करने के उदाहरण के रूप में देखा गया। हालांकि पूर्ण कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद नायडू ने 2004 के भारतीय आम चुनाव में एनडीए के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए से हारने के बाद इस्तीफा दे दिया। उनके बाद बाद आडवाणी को शेष समय के लिए बनाया गया। साल 2005 में विवादों के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

दो बार अध्यक्ष बने राजनाथ सिंह

वर्तमान में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भारतीय जनता पार्टी के दो बार अध्यक्ष बने। आडवाणी के इस्तीफे के बाद उन्हें 2005 में शेष समय के लिए अध्यक्ष बनाया गया। 2006 में उन्हें पूर्ण रूप से अध्यक्ष बनाया गया। एनडीए के 2009 के भारतीय आम चुनाव हारने के बाद सिंह ने इस्तीफा दे दिया। उनका दूसरा पूर्ण कार्यकाल 2013-2014 का रहा। उनके कार्यकाल में साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को पहली बार अपने दम पर बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी देश के पीएम बने।

सबसे युवा अध्यक्ष बने गडकरी

(2009-2013): गडकरी 2009 में भाजपा के सबसे युवा अध्यक्ष बने। लंबे समय से आरएसएस के सदस्य रहे गडकरी महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार में मंत्री और भाजपा युवा शाखा के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्हें आरएसएस नेतृत्व का भरपूर समर्थन प्राप्त था। गडकरी ने पूर्ति घोटाले और वित्तीय अनियमितताओं के अन्य आरोपों के बाद 2013 में इस्तीफा दे दिया था। उन्हें उम्मीद थी कि वह दोबारा अध्यक्ष चुने जाने पर बीजेपी की तरफ से पीएम पद के प्रबल दावेदार होंगे। 2013 में गडकरी के पद छोड़ने के बाद सिंह को दूसरे कार्यकाल के लिए अध्यक्ष चुना गया।

शाह के नेतृत्व में बीजपी ने किया 300 पार

(2014-2020): भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी विश्वासपात्र अमित शाह, राजनाथ सिंह के पहले मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उनके कार्यकाल के शेष समय के लिए भाजपा अध्यक्ष बने। शाह की नियुक्ति को भाजपा पर मोदी के नियंत्रण का प्रदर्शन बताया। शाह को 2016 में पूरे तीन साल के कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया। उनके कार्यकाल के दौरान भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत दर्ज की। बीजेपी ने इस बार 300 सीटों का आंकड़ा पार किया।
अमित शाह भी विवादों से घिरे रहे। सीबीआई ने अमित शाह को सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी क़ौसर बी की हत्या के मामले में आरोपी बनाया था। जिसके कारण साल 2010 में अमित शाह को तड़ीपार किया गया था। उन पर महिला आर्किटेक की जासूसी कराने का भी आरोप लगाया था।

नड्डा के कार्यकाल में तीसरी बार बनी मोदी सरकार

(2020 से अब तक जारी): आरएसएस से लंबे समय से जुड़े जेपी नड्डा कॉलेज में एबीवीपी से जुड़े रहे और भाजपा की युवा शाखा में आगे बढ़े। वे हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के सदस्य चुने गए और बाद में 1998 से 2003 तक एनडीए के नेतृत्व वाली भारत सरकार में मंत्री पद पर रहे। उन्हें 2019 में भाजपा का “कार्यकारी अध्यक्ष” चुना गया और अध्यक्ष चुने जाने से पहले एक साल तक उन्होंने अमित शाह के साथ पार्टी चलाने की जिम्मेदारी साझा की। उनके कार्यकाल के दौरान भाजपा ने सहयोगी दलों की मदद से तीसरी बार सरकार बनाई।

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