भारत सरकार ने कहा- ज्यादा कुछ नहीं कर सकते
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में साफ साफ कह दिया कि वह निमिषा को यमन में बचाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकती है। इसपर अदालत ने दुख भी व्यक्त किया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें भारत सरकार को राजनयिक माध्यम से बातचीत के जरिए यमन में मौत की सजा पाने वाली प्रिया को बचाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। प्रिया की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत को बताया कि उसे बचाने का एकमात्र विकल्प ‘ब्लडमनी’ समझौता है, बशर्ते मृतक का परिवार इसे स्वीकार करने को तैयार हो। इसके जवाब में अटॉर्नी जनरल (एजीआई) ने कहा कि भारत सरकार प्रिया की मदद के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि यमन में प्रिया के मामले को देख रहे सरकारी वकील सहित यमन के अधिकारियों के साथ फांसी के आदेश को निलंबित करने के लिए भी बातचीत चल रही है।
मृतक के परिवार को 8.5 करोड़ का दिया ऑफर
इसके साथ, अटॉर्नी जनरल ने यह भी जानकारी दी कि यमन में मृतक के परिवार को 10 लाख डॉलर यानी 8.5 करोड़ रुपये ऑफर भी दिया जा चुका है, लेकिन अभी तक इसे स्वीकार नहीं किया गया है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि परिवार ने पैसे लेने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि यह उनके सम्मान का सवाल है। एजीआई ने यह कहा कि इस मामले में भारत सरकार की हस्तक्षेप करने की क्षमता सीमित है। उन्होंने कहा कि यमन में मामला गंभीर है, ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे हम जान सकें कि वहां क्या हो रहा है। एजीआई ने कहा कि हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते। यह दुनिया के किसी भी अन्य देश जैसा नहीं है, जहां बातचीत संभव हो सके।
कोर्ट ने कहा- नहीं बचा पाए तो दुखद होगा
उधर, केंद्र सरकार की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने गहरी चिंता व्यक्त की। इसके साथ कहा कि अगर प्रिया अपनी जान गांवा देती हैं तो यह बहुत दुखद होगा। प्रिया के वकील और एजीआई दोनों की दलीलें सुनने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 18 जुलाई को निर्धारित की है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि पक्ष अगली तारीख पर मामले की स्थिति के बारे में न्यायालय को अवगत करा सकते हैं।